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कितनी मिठास है ना ---इस घर शब्द में


घर यूं ही तो नहीं बन जाता। हरेक  मन के किसी कोने में अपना घर और उसकी तस्वीर रखता है। इसकी पहली झलक जीवन के कई वसंत बाद नज़र आती है। मन का घर, विचारों का घर, अहसासों का घर, सपनों का घर, अपनों का घर---। कितनी मिठास है ना ---इस घर शब्द में। अपना दालान, अपनी छत जैसे अपने हिस्से का आसमां, अपने हिस्से की हवा। एक-एक ईंट हमें अपनी उम्र के घंटों और मिनटों जैसी प्रिय लगती है। हमारा पहला कदम घर कीओर नहीं अपने मन की ओर होता है। पहले कदम की खुशी 😃 का अहसास पूरे मन से करें, घर को जीएं, उसे संस्कारों से सिंचित करें ---। अकेले में सही घर से बतियायें, अपनी कहें उससे अपने मन की बात करें। आपसे कहूं कि ये घर आपके साथ जीता है, आपके दर्द को महसूसता है और आपकी खुशी में गुदगुदाता है। अब खुशियों का घर यदि शब्दों में परिभाषित किया जाए तब आपको वह सबसे प्रिय महाग्रंथ लगेगा....सहेजकर रखियेगा देखिये आपका घर मुस्कुरा रहा है। 

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16 Comments

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (6-4-21) को "हार भी जरूरी है"(चर्चा अंक-4028) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. जी बहुत आभार कामिनी जी...।

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  3. भावों से भरा लेख संदीप जी | घर यानि दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह , जहाँ इन्सान अपने मौलिक रूप में बिना किसी आवरण के होता है |

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    1. बहुत नेह भरा आभार रेणु जी...। शब्दों दुनिया नायाब होती है इसका आनंद लिखने वाले ही महसूस कर सकते हैं।

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  4. जी हां । लेकिन अपने सपनों का घर खुशनसीबों को ही मिलता है ।

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    1. सच है...बहुत से ऐसे हैं जिन्हें सपना तो मिलता है लेकिन घर नहीं....आभार आपका।

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  5. सुन्दर सृजन ।

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    1. जी बहुत आभार आपका अमृता जी।

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  6. बहुत भावपूर्ण रचना। इंसान को सबसे ज्यादा शांति और खुशी खुद के घर मे ही मिलती है।

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    1. जी बहुत आभार आपका ज्योति जी।

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  7. सुंदर भावपूर्ण उद्गार ।
    श्रेष्ठ लेख।

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  8. बहुत अच्छा रचना सर

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  9. बहुत ही सुंदर, घर की बात ही कुछ और होती, एक बंगला बना न्यारा, प्यारी सी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई हो, नमन

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  10. बहुत सुंदर सृजन

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