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ये दौर ही कुछ ऐसा है...



ये तस्वीर पुरानी है लेकिन आज को चीख चीखकर बयां कर रही है...। कोई दो बूंद खुशी से बेज़ार है कोई नहा रहा है खुशियों की बरसात में...। दरअसल हम अपने बनाए.सिस्टम को केवल महसूस करें...अच्छा लगे और जंच जाए तो फिर खूब नहाईये कौन रोकता है, भाई बुरा लगे दूर खड़े होकर केवल निहारिए... क्योंकि तब आप केवल मूक दर्शक होंगे...। यहां भैंसों से खासकर गर्मी में झुलसते बेपानी लोग चिड़ने लगेंगे लेकिन ये व्यर्थ है क्योंकि भैंस अपनी बुद्धि कहां रखती है  बुद्धिमान तो मालिक है जिसे सिस्टम समझ आता है...। अब आप तय कीजिए...क्या चाहते हैं...

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