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गौरेया तुम्हारे लिए

कैसे कहूं... तुमसे बतियाना चाहता था गौरेया। यह आत्मग्लानि है और मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था... ओ री प्यारी गौरेया कैसे कहूँ कि मैं तुमसे बतियाना चाहता था...। जानता हूँ 40 का तापमान तुम्हारे लिए नहीं है... किसी के लिए भी नहीं है... लेकिन तुम्हारे लिए तो यह  जानलेवा है। यकीन मानो जब तुम भयभीत होकर अपने घौंसले से उड़ गईं और धूप में मुंडेर पर बैठ मुझे देख रही थीं मैं ग्लानि में धंसा जा रहा था। 

मैं नहीं जानता था कि  घौंसले में तुम सुस्ता रही हो। मैं स्वार्थी होकर घौंसले के करीब था और तुम्हें घौंसले में देख में अपने आप को खुशनसीब मानकर तुम्हें करीब से देखने लगा...तुमने भी देखा, ऐसे लगा जैसे कुछ देर में तुमसे पहचान हो जाएगी... तुम मुझसे दोस्ताना बर्ताव करोगी लेकिन तुम बहुत भयभीत थीं...। मैं वहां से हट गया... और दूर से तुम्हें देख रहा था कि काश तुम घौंसले में लौट जातीं...। 

तुम काफी देर मुंडेर पर ही रहीं, यकीन मानो मैं बहुत दुखी था, मैं समझ चुका हूँ हमारी दुनिया के क्रूर कर्म हमारे रिश्ते पर तुम्हारे सवालिया निशान हैं। तुम सही हो...हमेशा से सही थीं...मुझे समझना चाहिए कि तुम्हारे घौंसले तक मुझे नहीं जाना चाहिए था, किसी को भी नहीं जाना चाहिए, तुम्हारी दुनिया अपनी है और हमें केवल तुम्हें महसूस करना है, दूर से देखना है। 

तुम कितनी मासूम हो और हमारा समाज तुम्हारी दुनिया में कितना भरोसा खो चुका है। यकीन मानो मैं पूरा दिन तुम्हें सोचता रहा...। सोचता हूँ क्या जरूरी है मेरा तुम्हें करीब से देखना...? तुम्हारे हालात में हम तो जीना ही भूल जाएंगे... ओह। एक ही राहत रही कि मैं जब लौट रहा था तुम धूप वाली मुंडेर से उड़कर हरे वृक्ष पर बैठ गईं...जानता हूँ तुम लौट गई होगी घौंसले में लेकिन तुम्हाररे थके शरीर का दर्द मैं जानता हूँ... हो सके तो माफ करना... प्रयास करूंगा हमारे रिश्ते सुधरें...अगले बार मैं जब आसपास रहूं तो बेशक तुम दूर ही रहना लेकिन ओझल मत होना। 

हमारी धरती और दुनिया सुलग रही है...अति महत्वाकांक्षा हमें यहां तक ले आई, पहले तुम हमारे घरों में किसी कोने में...तस्वीर के पीछे घौंसला बना लिया करती थीं लेकिन अब घर सख्त हैं और हमारे मन पत्थर।  हम भरोसा हार चुके हैं... लेकिन हम दोस्त बनेंगे गौरेया...। हम सभी खराब नहीं हैं, हम तुम्हें जीना चाहते हैं, माफ करना मेरी नन्हीं दोस्त...। 


Photograph by sandeep kumar sharma

 

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5 Comments

  1. मार्मिक रचना, ग्लोबल वार्मिंग का असर हर कोई भुगत रहा है

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    1. आभार आपका अनीता जी. ..

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  2. आभार आपका आदरणीय शास्त्री जी

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  3. "पहले तुम हमारे घरों में किसी कोने में...तस्वीर के पीछे घौंसला बना लिया करती थीं लेकिन अब घर सख्त हैं और हमारे मन पत्थर।"
    बिलकुल सही कहा आपने "हमारे मन ही पथ्थर के हो गए है "पहले गौरेया का घर में घोसला बनाना सुकून देता था और अब लोगों को गंदगी फैलाना लगता है।
    दिल को छूती पाती।काश,गौरेया आपका खत पढ़ लेती और जो कुछ लोग बचे है उनका परवाह करने वाले उन से तो नफरत करना और डरना छोड़ देती,सादर नमन

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