मुंबई समुद्र किनारे प्लास्टिक के कारण किनारों के हालात। 
फोटोग्राफ अखिल हार्डिया, इंदौर, मप्र

- वैश्विक संकट- सिंगल यूज प्लास्टिक 

प्लास्टिक का उपयोग और उपयोग के बाद उसके निस्तारण की कोई भी ठोस व्यवस्था न होने के कारण यह आने वाले सालों और अगली सदी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बनने जा रहा है। हमें सोचना है कि हम इसका नियंत्रण करने की आदत डालेंं या इसके उपयोग के बाद इसके निस्तारण पर काम करें, चुनौतियां दोनों विषयों में हैं लेकिन हमें विशेषकर सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग पर वैश्विक प्रभावी नीति पर काम करना होगा, खतरा बहुत बड़ा है और हर दिन के साथ यह और मुश्किल होता जा रहा है। इसके उपयोग को बेहद आवश्यक तौर पर रोकना होगा वरना कल और अगली सदी हमारे लिए केवल चुनौतियों से भरी होगी। यह वैश्विक खतरा है और जमीन, महासागर, नदियों सहित हमारे रहवासी हिस्सों के जलस्त्रोंतों और निकास व्यवस्था तक में आ पहुंचा है। इससे बचने के लिए केवल इसके उपयोग पर रोक चाहे वह वैश्विक हो या आत्मकेंद्रित बेहद जरुरी है फिलहाल इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है। हम यहां आंकडे भी देखेंगे, वैश्विक मंच की चिंता भी और क्या होना चाहिए उसे भी समझने का प्रयास करेंगे। यह समझना जरुरी है कि यदि समय से इस दिशा में सुधार की ओर हम सभी वैश्विक तौर पर मिलकर अग्रसर नहीं हुए तो एक दिन हमारे पैरों के नीचे जमीन नहीं प्लास्टिक के क्रूर पहाड़ होंगे। 

यहां हम वैश्विक चिंता को समझने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश के बयान देखते हैं जो उन्होंने इसी वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर अपने संदेश में दिया था यह बहुत महत्वपूर्ण है इससे हम समझ पाएंगे कि हम किस गति से प्लास्टिक को ढो रहे हैं और किस गति से हम संकट की ओर अग्रसर हैं। 

2,000 भरे हुए ट्रकों के बराबर मात्रा में प्लास्टिक हर दिन फेंकी जा रही है

महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने अपने सन्देश में प्लास्टिक कूड़े-कचरे (अपशिष्ट) के त्रासद परिणामों से छुटकारा पाने की महत्ता पर ज़ोर दिया था। “हर वर्ष, दुनिया भर में 40 करोड़ टन से भी ज़्यादा प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से लगभग एक तिहाई प्लास्टिक का प्रयोग केवल एक बार होता है। उनका कहना था कि “प्लास्टिक कचरे की लगभग 2,000 भरे हुए ट्रकों के बराबर मात्रा, हर दिन समुद्रों, नदियों और झीलों में फेंक दी जाती है। 

खाद्य पदार्थों तक पहुँच रहे हैं महीन कण 

यूएन महासचिव ने ध्यान दिलाया कि प्लास्टिक के महीन कण, उन खाद्य पदार्थों तक पहुँच रहे हैं जो हम खाते हैं, उस पानी में भी, जो हम पीते हैं, और यहां तक कि उस हवा में भी, जिसमें हम साँस लेते हैं। उन्होंने कहा, “प्लास्टिक जीवाश्म ईंधन से बनता है, हम जितना अधिक प्लास्टिक बनाते हैं, उतना ही ज़्यादा जीवाश्म ईंधन जलाते हैं और इस तरह हम जलवायु संकट को और भी बदतर बनाते जा रहे हैं।



महासागर के किनारे ऐसे हैं तो सोचिएगा कि समुद्र के भीतरी तल कैसा होगा। (फोटोग्राफ अखिल हार्डिया, इंदौर, मप्र)


चिंता के घेरे में समुद्र, नदियां और झीलें

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश के बयान सतत आ रहे हैं, इससे पहले भी संयुक्त राष्ट्र की ओर से समय-समय पर सचेत किया जाता रहा है, चिंता की बात यह है कि इतनी बड़ी संख्या में यदि प्लास्टिक केवल फेंका जा रहा है और गहन चिंता की बात यह भी है कि जहां फेंका जा रहा है वह कौन सी जगह हैं, चिंता करनी चाहिए क्योंकि समुद्र, नदियां और झीलें जहां का पानी कहीं ने कहीं किसी न किसी तरह से हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा है। समुद्र का पानी बेशक पेयजल के तौर पर वैश्विक उपयोग में नहीं आ रहा है लेकिन उसे पेयजल बनाने की दिशा में कार्य चल रहा है, खर्चीली प्रक्रिया है लेकिन एक आस तो है, एक उम्मीद है और दूसरी ओर यदि उन असंख्य जलीय जीवों के जीवन पर संकट को भी रेखांकित किया जाए तो संकट का आकार हमें समझ आ सकता है। चिंता का विषय है कि समुद्र का इस पूरे पर्यावरणीय चक्र में अपना स्थान है, अपनी महत्ता है। ठीक इसी तरह नदियां और झीलें भी अति महत्वपूर्ण हैं क्योंकियहां से हमारे जीवन पर सीधे प्रभाव आना तय है इसलिए चिंता के घेरे में समुद्र, नदियां और झीलें भी हैं। 

रहवासी हिस्सों में भी संकट 

वैश्विक पटल से हटकर भी बात करें तो अधिकांश आबादी वाले देशों में रहवासी हिस्सों में बने बड़े नालों में ये सिंगल यूज प्लास्टिक बड़ा खतरा बनने लगी है, बाढ़ का प्रमुख कारण यही प्लास्टिक है और क्योंकि नालों में गाद भरती है और गाद प्लास्टिक के कारण जाम हो जाती है, वैश्विक तौर पर देखें तो बारिश में अनेक देश ऐसे हैं जहां बाढ़ एक बडा कू्रर संकट बनती जा रही है। इसका असर आम व्यक्ति के जीवन पर पड़ रही रहा है, लेकिन यह भविष्य के लिए भी एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है। 

चौंकाने वाले आंकडे़

प्लास्टिक से होने वाले नुक़सान पर नजर रखनी चाहिए क्योंकि यह भविष्य का महासंकट बनने जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों को समझें। आ़कडें़ कहते हैं कि हर साल दुनिया भर में 40 करोड़ टन से ज़्यादा प्लास्टिक का उत्पादन होता है इसमें से लगभग 20 करोड़ टन प्लास्टिक का प्रयोग, केवल एक बार होता है। कुल प्लास्टिक में से केवल, 10 प्रतिशत मात्रा री-सायकिल होती यानि उसका पुनःप्रयोग होता है। सोचिएगा कि संकट कहां है, कितना बड़ा है और हमारे आंखें मूंद लेने से सुधार नहीं होगा, सुधार होगा तो हमारी आदतों में सुधार करने से। हमें सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को स्वतः आगे आकर कम करना होगा वरना एक दिन हमें अपनी इस खूबसूरत दुनिया को प्लास्टिक के क्रूर पहाड़ के उपर बैठा देंगे जहां न अनाज उत्पन्न होगा, न पीने का पानी होगा और न ही स्वच्छ हवा होगी। हमें उन सभी वैश्विक मंचों पर प्रकाशित हो रहे आलेखों को पढ़ना चाहिए और उनकी बातों को सीख और सबक मानकर सुधार की ओर अमल पर जुट जाना चाहिए। 

एक सर्कुलर अर्थव्यवस्था के निर्माण पर जोर 

यहां आखिर में उस वैश्विक चिंता पर अपने बयान में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश के बयान को पूरी तरह समझना जरुरी है कि वे चाहते हैं कि यह विश्व सुधार की ओर अग्रसर हो। उन्होंने इस सन्दर्भ में ज़ोर देकर कहा कि संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक रिपोर्ट दर्शाती है कि अगर पूरी मानवता, प्लास्टिक के पुनः प्रयोग, री-सायकिल करने और प्लास्टिक से दूर रहने के लिए अभी से कार्रवाई करनी शुरू करें तो प्लास्टिक प्रदूषण में, वर्ष 2040 तक, 80 प्रतिशत तक की अदभुत कमी की जा सकती है। उन्होंने कहा “हमें एकजुटता के साथ काम करना होगा। देशों की सरकारों, कम्पनियों और उपभोक्ताओं सभी को एक साथ मिलकर इस दिशा में कार्य करना होगा। प्लास्टिक प्रयोग के लिए हमारी लत को ख़त्म करके शून्य अपशिष्ट को बढ़ावा देकर और सही मायनों में एक सर्कुलर अर्थव्यवस्था का निर्माण करना होगा। वाकई यदि एक कोई ठोस निर्णय आता है और सभी उसे क्रियान्वयन करते हैं तो निश्चित ही सुधार की राह बन सकती है लेकिन फिलहाल संकट तेजी से बढ़ रहा है। री-साइकिल की राह मुश्किल और बहुत अधिक उम्मीद नहीं बंधाती लेकिन इसके उपयोग में कमी कर हम एक बेहतर राह बना सकते हैं, यह भी सोचना होगा कि जो खतरा है वह आने वाले क्रूर सालों को हमारे सामने लाने की तैयारी भी है। 

वरना अगली संभावित सदी मुश्किलों भरी होगी 

हम यह मान भी लें कि प्लास्टिक प्रदूषण में, वर्ष 2040 तक, 80 प्रतिशत तक की अदभुत कमी की जा सकती है, यह एक अच्छा और बेहद जरुरी प्लान है लेकिन इसके क्रियान्वयन पर नीतिगत निर्णय भी जरुरी हैं। यहां विचारणीय प्रश्न यह भी है कि प्लास्टिक का संकट किसी एक देश का नहीं है, वह इस धरती से लेकर आकाश तक और समुद्र से लेकर जमीन तक सभी का संकट है, संकटों का कोई ऐसा क्रूर पहाड़ हमारे सामने तेजी से बढ़ता जा रहा है और आंकड़ों के सामने होने के बावजूद भी यदि हम नहीं चेते तो यकीन मानिए कि केवल चिंता से कुछ नहीं होगा, आने वाले वर्ष और अगली संभावित सदी जीवन से अधिक प्राकृतिक मुश्किलों के लिए पहचानी जाएगी। 


संदीप कुमार शर्मा,

संपादक, प्रकृति दर्शन, राष्ट्रीय मासिक पत्रिका 


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संदर्भ- 

1. संयुक्त राष्ट्र वैश्विक समाचार