Air quality

From National AQI - Source CPCB

दिल्लीवासी उसे केवल भोगते हैं 

वायु प्रदूषण ने देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर के हालात खराब कर रखे हैं, कारण बहुत हैं लेकिन हकीकत यह है कि वायु प्रदूषण से बचने के कोई ठोस इंतजाम दिल्ली सहित इन हिस्सों के पास नहीं हैं। दिल्ली और दिल्ली से सटे हिस्सों में हालात खराब हैं, चिंताजनक बात यह है कि वायु प्रदूषण हर वर्ष चिंता का सबब बन रहा है और दिल्लीवासी उसे केवल भोगते हैं, प्लानिंग की बात करें तो पूर्व में लागू हो चुके ऑड ईवन फार्मूले के अलावा पुराने धुआं छोड़ने वाले वाहनों के दिल्ली के सीमा में प्रतिबंध सहित अनेक कदम उठाए जाते रहे हैं लेकिन ठोस हल नहीं है। पूर्व के वर्षो की तरह इस बार भी प्रदूषण बढ़ते ही चिंता भी बढ़ने लगी है क्योंकि वायु प्रदूषण के बढ़ने का सीधा अर्थ है कि आम जन के स्वास्थ्य पर उसका विपरीत असर हो सकता है, विशेषकर बुजुर्गां, बीमार व्यक्तियों और बच्चों पर इसका बुरा असर पड़ सकता है। प्रदूषण का संकट आजजन के जीवन पर प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा है लेकिन कोई ठोस दिशा या हल अब तक नहीं है, जो है वह त्वरित नियंत्रण की मांग पर खरा नहीं उतरता या फिर बेहद खर्चीला है, कुल मिलाकर प्रदूषण पर नियंत्रण नीति नियंताओं के लिए भी चिंता का विषय है और उनकी परीक्षा का भी समय है। 

हालात देखें 

आज 17 नवंबर 2023 को जब इस वायु प्रदूषण के विषय पर लिख रहे हैं तो पहले तो आज के हालात देख लें कि दिल्ली के अंदरुनी हिस्सों के क्या हाल हैं। 


- द्वारका-सेक्टर 8, दिल्ली - डीपीसीसी- द्वारका- 490 एक्यूआई (गंभीर) 

- पंजाबी बाग, दिल्ली - डीपीसीसी- पीतमपुरा -         484 एक्यूआई (गंभीर)

- मुंडका, दिल्ली - डीपीसीसी-भीम नगर -          483 एक्यूआई (गंभीर)

- नेहरू नगर, दिल्ली - डीपीसीसी- विनोबा पुरी -         475 एक्यूआई (गंभीर) 

- वज़ीरपुर, दिल्ली - डीपीसीसी- शालीमार बाग -         467 एक्यूआई (गंभीर) 

- आईजीआई हवाई अड्डा (टी3), दिल्ली - आईएमडी-    460 एक्यूआई (गंभीर) 

- आर के पुरम, दिल्ली - डीपीसीसी- नई दिल्ली-         459 एक्यूआई (गंभीर)

- एनएसआईटी द्वारका, दिल्ली - सीपीसीबी- द्वारका -   452 एक्यूआई (गंभीर) 

- पूसा, दिल्ली - डीपीसीसी- पश्चिमी दिल्ली -         438 एक्यूआई (गंभीर)

- मंदिर मार्ग, दिल्ली - डीपीसीसी- मध्य दिल्ली -         437 एक्यूआई (गंभीर) 

- नॉर्थ कैंपस, डीयू, दिल्ली - आईएमडी- दिल्ली दुग्ध यो कॉ 429 एक्यूआई (गंभीर)

- शादीपुर, दिल्ली - सीपीसीबी- पश्चिमी दिल्ली - 416 एक्यूआई (गंभीर)

- पूसा, दिल्ली - आईएमडी- पश्चिमी दिल्ली - 400 एक्यूआई (बहुत खराब)

Air quality

From National AQI - Source CPCB 


यह हालात प्रत्येक वर्ष के हैं, इन हिस्सों के अलावा भी दिल्ली के आसपास के हिस्सों में वायु प्रदूषण का जहर घुल रहा है, नवंबर, दिसंबर दो माह में अनेक बार प्रदूषण का स्तर गंभीर तक पहुंच जाता है। दिल्ली एनसीआर में वाहनों की अधिकता, जाम के अलावा दीपावली पर आतिशबाजी के साथ ही और बीते वर्षो में पराली जलाने को लेकर भी काफी बहस हुई हैं लेकिन सुधार अब तक नहीं आया। हालात खस्ता होते जा रहे हैं। 

मुश्किल हालात, ठोस राह नहीं 

वायु प्रदूषण को लेकर जब भी सुधार की बात आती है तो सरकार की ओर से प्रतिबंध पर पहला फोकस किया जाता है, अमूमन निर्माण कार्यो पर रोक के साथ ही अनफिट वाहनों के प्रवेश पर रोक भी लगाई जाती है, वायु प्रदूषण से बचने के लिए पराली जलाने से रोकने के लिए जागरुकता के भी प्रयास किए जाते रहे हैं, इसके अलावा वैकल्पिक वर्षा भी एक रास्ता इस दौरान चर्चा में सामने आता है, लेकिन यह प्रदूषण को तत्कालिक तौर पर कम कर सकते हैं लेकिन ऐसा कुछ अब तक नहीं है कि अगले वर्ष हम तैयारी करें कि अपनी दिल्ली सहित एनसीआर को प्रदूषण के गंभीर हालातों में फंसने ही नहीं देंगे, इसकी तैयारी पर अब तक कोई भी ठोस प्लान नहीं है, प्रयास जारी हैं लेकिन हर बार स्थितियां खराब से अधिक खराब और गंभीर होती जा रही हैं।

वायु प्रदूषण से पीड़ा 

बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों विशेषकर श्वास संबंधी बीमारियों से ग्रसित व्यक्ति के लिए यह समय बेहद कठिन होता है, तकलीफ बढ़ने लगती है, हालात जल्द सुधरने की उम्मीद सभी को रहती है लेकिन हालात जल्द सुधारना हम सभी के लिए आसान भी नहीं है। इसके अलावा बच्चों के लिए भी यह समय बेहद चिंता का होता है। वायु प्रदूषण में स्थितियां गंभीर पहुंचने पर स्कूलों में अवकाश घोषित कर दिया जाता है, इस बार भी दिल्ली में स्कूलों में अवकाश घोषित किया गया, यह स्वास्थ्य के लिए लिहाज से जरुरी था लेकिन क्या यह वायु प्रदूषण दिल्ली की नियति बन चुका है। क्या इससे बचने का कोई प्लान नहीं है, या यह उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रदूषण के इस मुश्किल समय से जूझने के दौरान किसी बेहतर विकल्प को खोजे जाने पर कार्य आरंभ होना चाहिए। 

उम्मीद करें कि बेहतर राह खोजी जाएगी

प्रत्येक वर्ष यह हालात आते हैं, लेकिन कोई हल नहीं है। स्वाभाविक बारिश यदि हो जाए तो हालात तेजी से बदलते हैं लेकिन यदि नहीं हो तो उन्हें नियंत्रण करना आसान नहीं होता। यहां ये भी समझा जा सकता है कि प्रकृति ही मूल है और उसके उपर कभी भी भौतिकता और विकास को नहीं रखा जा सकता है। विकास के लिए प्रकृति को दरकिनार करने का परिणाम सामने है लेकिन हम मानव उम्मीद पर पूरा जीवन जी जाते हैं तो उम्मीद करनी चाहिए कि दूसरे देशों में हो रहे सुधारों को आधार बनाकर, उनका अध्ययन कर हमारे यहां भी वायु प्रदूषण पर हर वर्ष गंभीर हालात में फंसती दिल्ली और एनसीआर के क्षेत्र को हम बचाने की ओर अग्रसर हों...।


संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति दर्शन