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बोनसाई की बढ़ती दीवानगी


समझिए फिर खूब लगाईये

बोनसाई का सीधा सा अर्थ यदि हम समझें तो वह होता है बौना पौधा। यह प्रजातियां वर्तमान दौर में खासी पसंद की जा रही हैं, टैरेस गार्डनिंग के शौकिनों का बोनसाई को लेकर जो लगाव है वह एक अलग और गहरी अनुभूति ही है, हालांकि जो इसे सहेज रहे हैं, जिनके टैरेस पर बोनसाई मौजूद है वह यह बात भी स्वीकार करते हैं कि इसकी देखरेख आसान नहीं है लेकिन जिन्होंने इन्हें लगाया या इनके आसपास समय बिताया वह इनके बिना रह भी नहीं पाते हैं। यह भी कहा जाता है कि बोनसाई एक महंगा शौक है, आंगन की बागवानी भी आसान नहीं है लेकिन बावजूद इसके डिमांड बढ रही है, यह ऑनलाइन भी खूब खरीदे जा रहे हैं। बोनसाई पर बात करते हैं, कुछ समझते हैं उनके बारे में। छोटे कद के पौधों को चाहने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यहां यह कहना बेहद आवश्यक है कि बागवानी चाहे सामान्य पौधों, फूलों के पौधों, सजावटी पौधों या फलीय पौधों से की जाए या फिर बोनसाई लगाए जाएं लेकिन सच मानिए कि यह आपको अनेक बार अवसाद से बाहर भी निकाल लाने का कार्य करती है। ऐसे उदाहरण आपको मिल जाएंगे। 

बोनसाई

बोनसाई पौधों की देखरेख में काफी समय बिताना आवश्यक होता है, यही कारण है कि रिटारमेंट के बाद नौकरीपेशा लोग इसके साथ, इसे लगाने में अपना काफी समय व्यतीत करते हैं। 
इन्हें गमले में इस प्रकार उगाया जाता है कि प्राकृतिक रूप भी बना रहे, बोनसाई एक बडी खासियत यह भी है कि इसे घर के किसी भी हिस्से में रखा जा सकता है लेकिन पौधों की प्रजातियों पर निर्भर करता है कि किस पौधे को धूप में रखना है, किसी अधिक छांव में रखना है, किसे केवल छांव में रखना है और किसे केवल धूप में ही रखा जाना जरुरी है। कुल मिलाकर यहां यह कहना लाजमी है कि यदि आप बोनसाई के पौधों को अपनी बागवानी का हिस्सा बनाना चाहते हैं और यह कार्य आप पहली बार कर रहे हैं तो आप सीधे उन्हें खरीदकर लाने से पहले या तो उनके रखरखाव के बारे में कुछ अध्ययन कीजिएगा या फिर उन लोगों से बात कीजिएगा जो बागवानी और टैरेस गार्डनिंग कर रहे हैं और उनके यहां पर बोनसाई पौधे हैं। 

प्रकृति का रिश्ता है
बेहतर होगा कि आप उनसे जानकारी ले लें और बोनसाई को समझ लें फिर इसे अपने गार्डन अथवा घर में स्थान दें। यह आसान कतई नहीं है लेकिन यह भी सच है कि जो इसके साथ समय बिता रहे हैं उन्हें यह बहुत अधिक अपना सा लगने लगता है, यह प्रकृति का रिश्ता है या पौधे से अपनापन लेकिन यह सच है।  

अपनी मां से बागवानी को समझा 
हम यहां आपसे यहां इस आलेख के माध्यम से एक ऐसी शख्सियत के ज्ञान से आपको परिचित करवा रहे हैं जिन्होंने एक उम्र के बाद यह साबित कर दिखाया कि बागवानी केवल शौक नहीं है यह जीवन में शांति और गहरा सुख प्रदान करती है जिससे अनेक बार आप अवसाद वाले खतरनाक दौर से भी बाहर निकल आते हैं। बागवानी किस तरह अवसाद से बाहर निकलने में सहायक होती है ? यह  कोलकाता के 64 वर्षीय तारकेश्वर जायसवाल जी की जीवन गाथा को समझकर जाना जा सकता है। तारकेश्वर जायसवाल जी का कहना है कि ऐसे काफी सारे लोगों के साथ होता है कि जब आप जीवन में कुछ बनने का सपना संजोते हो लेकिन वह आप बन नहीं पाते, ऐसे समय में अवसाद से ग्रसित होना सामान्य बात है लेकिन अवसाद से ग्रसित बने रहना और उससे कभी भी बाहर न निकल पाना एक बहुत गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि यहां के बाद आप अपने जीवन जीने की लय भूल जाते हैं या तो आप बीमार हो जाएंगे या फिर आप इस दुनिया से अपने आप को अलग कर लेंगे, यहां बताना जरुरी है कि ऐसे दौर से वे स्वयं भी बाहर निकले हैं, एक समय ऐसा भी आया कि जो करना चाहते थे वह नहीं कर पाए, मन गहरे से अंधकार की ओर बढ़ने लगा। इसके बाद उन्होंने अपनी मां से बागवानी को समझा और उसे पूरे मन से स्वीकारा। वे बागवानी के लिए अपनी मां को अपना गुरु मानते हैं क्योंकि उन्होंने से ही जो सीख दी उसी से जीवन में अवसाद के दौर से निकालने में मदद की। 



  64 वर्षीय तारकेश्वर जायसवाल जी, कोलकाता 


ऐसे पहुंचे बोनसाई के करीब 

धार्मिक स्वभाव और विचारों वाली माँ ने कुछ पौधे पूजा के लिए लगा रखें थे जिसमें तुलसी, आँवला, केला, फूलों में टगर, जवाँ (गुलहड़) गेंदा, अपराजिता, बेला इत्यादि पौधे छत पर गमले मे लगा रखे थे जिनमें पानी देने का कार्य मैंने स्वेच्छा से लिया था। धीरे-धीरे गमलों में मिट्टी बदलना, नये पौधों को लगाने, मिट्टी कुदेरना इत्यादि कार्य माता जी से ही सीखता रहा, अब कुछ फूलों के पौधे मैंने भी लगाये। नये पौधों को खरीदने हेतु जेब खर्च के लिए मिलने वाले पैसे का उपयोग करता था। यह शौक बढ़ता रहा पौधों के साथ-साथ इनकी बारिकी भी समझने लगा। उनका कहना था कि जहां मेरा मकान हैं भौगोलिक दृष्टि से किसी भी तरह बागवानी के उपयुक्त नही रहा है। मध्य कोलकाता के बीच चारों तरफ कांक्रीट के मकानों से घिरा, दूर-दूर तक कहीं भी जमीन पर मिट्टी का निशान तक नहीं, गाड़ियों के धुएं और शोर शराबे, धूप से मकानों की तपन, चारों तरफ प्रदूषण, कहीं से भी बागवानी के अनुकूल नहीं है। मिट्टी, गोबर, खाद की तो पूछिये ही मत, यही सब कारण है कुछ लोग जिन्हें पौधों का शौक तो हैं मगर उन्हें बचा नही पाते। संयुक्त परिवार का मकान था इस लिए छत पर सभी आते जाते थे अबतक फूलों के पौधों का अच्छा संग्रह हो गया था,मगर मेरे हिस्से में पौधे लगाना, खाद, पानी देना ही था, कलियों के आने तक का ही आनंद मिल पाता था फूलों को खिलते ही तोड़ लिए जाते थे। सब कुछ जानकर भी चुप रहना पड़ता था लेकिन दुख तो होता ही था। पौधों के प्रति लगाव बढ़ता ही गया, अचानक 1989 में एक समाचार पत्र के विशेषांक में बोनसाई पर एक संक्षिप्त लेख पढा़ इसके पहले बोनसाई के बारे मे कुछ भी पता नहीं था, लेख मे कुछ खास नहीं था पौधों की एक कला बोनसाई है इतनी ही जानकारी थी। अब मुझे इस कला के प्रति जिज्ञासा बढ़ने लगी, कुछ पुस्तकों का संग्रह किया,  लेकिन अपने यहां अब तक कोई अच्छी पुस्तक उपलब्ध नहीं थी और सच्चाई तो यह हैं अब तक भी नहीं है। वावजूद मेरी जिज्ञासा बढ़ती गई, धीरे-धीरे कुछ बोनसाई मित्र मिले आपस में चर्चा करके इस कला में कुछ सुधार होने लगा, घंटों वृक्षों को देखते-देखते बहुत कुछ समझ में आने लगा और मेरी कला में भी सुधार होने लगा, कुछ मित्रों की सहायता से बोनसाई पर पुस्तकें भी उपलब्ध हुईं। 


बोनसाई ने दिलाया सम्मान 

कोलकाता मे दो बडी़ पुष्प प्रदर्शनियों का आयोजन होता है, अच्छे बोनसाई देखने की आशा मे उनमें गया, फूलों के आकर्षक संग्रह देखने को मिले मगर बोनसाई के विभाग में बहुत ही दयनीय हालत में दो-चार पौधों मिले जिन्हें देखकर कहीं से भी संतुष्टी नही हुई, वावजूद इसके बोनसाई के प्रति लगाव बढता गया। पौधों की संख्याओं में भी वृद्धि हुई और धीरे-धीरे बोनसाई की सुंदरता भी बढ़ती गई, बोनसाई पर काम करना आरंभ कर दिया। वर्ष 2005 में मित्रों के विशेष आग्रह से कोलकाता की बड़ी पुष्प प्रदर्शनी जिसका आयोजन विधानसभा एवं कोलकाता फलावर्स ग्रोविग एसोसिएशन द्वारा किया जाता था, अपनी बोनसाई को प्रदर्शित किया। बोनसाई के आठ विभागों में कुल 16 पौधे होने आवश्यक थे, मैंने जीवन की पहली पुष्प प्रदर्शनी में भाग लिया था और बोनसाई के सभी विभाग में मेरे वामन वृक्षों ने प्रथम स्थान प्राप्त कर चैलेंज ट्राफी से मुझे सम्मानित कराया। यह जीवन की एक अहम उपलब्धि है क्योंकि एक समय जब जीवन गहरे अवसाद में खो गया था, लगता था कि आगे जीवन में कुछ बचा नहीं है लेकिन अपने आप को प्रकृति के करीब लाकर बोनसाई को समझना आरंभ किया, उस पर कार्य करना आरंभ किया और अब काफी कार्य बोनसाई पर कर चुके हैं, लेकिन फिर भी लगता है कि बोनसाई को समझना अब भी शेष है। 


वामन वृक्ष का कला का जन्मदाता भारत है

तारकेश्वर जायसवाल जी का कहना है कि लोग कहते हैं कि बोनसाई का आविष्कार चीन देश से हुआ है, मगर मेरा मानना हैं वामन वृक्ष कला का जन्मदाता भारत है जिसका वर्णन सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद इतिहासकारों ने किया हैं। सम्राट अशोक अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जलमार्ग से जावा, सुमित्रा, बाली,इन्डोनेशिया, चीन आदि देशों में भेजे थे,यहां वर्णन आता है उन्हें उपहार स्वरूप छोटे छोटे वनस्पतियों के वामन वृक्ष भेंट स्वरूप दिए गये थे जो जलमार्ग से ले जाने के उपयुक्त थे, इस तरह इस कला का प्रचार और प्रसार बौद्ध धर्म के मानने वाले देशों में सर्वप्रथम देखने को मिला,आज इन देश में वामनवृक्ष कला फल फूल रही हैं, यहां की सरकार भी इस कला को प्रोत्साहन देती हैं कई देशो ने तो अपने डाक टिकटों में भी स्थान दे रखा है। 

कुछ मुश्किलें भी हैं

उनका कहना है कि चार घंटों का समय तो पौधां के लिए निकालना ही पड़ता हैं ऐसा नहीं है कि मुझे सहयोगी की जरूरत नहीं हैं, मगर शहरों मे इस कार्य के लिए आदमी मिलना बहुत ही मुश्किल है, मोटी मजदूरी के बावजूद यहां अनुभवी माली नही मिलते हैं, माली ही नही आधुनिक शहरों मे मिट्टी, गोबर, खाद इत्यादि नहीं मिलते। इनके लिए शहर से बाहर ग्रामीण क्षेत्र में जाकर नर्सरी से सामान लाने पड़ते हैं जो कुल मिलाकर बहुत ही खर्चीले हो जाते हैं। उन्होंने जिन प्रजातियों का संग्रह कर रखा है उनके नाम हैं, लगभग 250 वामन वृक्षों का संग्रह हैं जिसमें- फायकस की किस्म :- पीपल, बोध पीपल लिपस्टिक, रेटुसा, पांडा, माइक्रोकार्पा, लांग आईलैंड मिनी, लॉन्गिसलैंड,जैक्विन फ़ोलिया, ब्लूइसलैंड, नुडा,कॉम्पेक्टा, पाकड़, बरगद, बेंगामिना, जुनिपेस, सेवड़ा, बकुल, कार्मोना, चीड़, जैकीना, सेरीसा फोएटिडा, थूजा, लैगरस्ट्रोइमोआ इंडिका, जंगल जलेबी, चीड़, इत्यादि। यह सभी रबर या वट वृक्ष की प्रजातियां हैं। 
हम बात करें तो बोनसाई मेहनत मांगते हैं, रखरखाव का समय और अनुकूल परिस्थितियां भी जरुरी हैं, उन्हें देखरेख की बहुत अधिक आवश्यकता होती है, बावजूद इसके जो बात प्रभावित करती है वह यह कि प्रकृति संरक्षण और बागवानी का शौक रखने वाले लोगों के लिए बोनसाई बेहद महत्वपूर्ण है इसकी प्रजातियां और इसके रखरखाव को लेकर सभी ने अपने अपने तरह से इंतजार किए हुए हैं। 

प्रकृति दर्शन में टैरेस गार्डर्निंग पर एक कॉलम  प्रकाशित किया जा रहा है

राष्ट्रीय मासिक पत्रिका प्रकृति दर्शन में टैरेस गार्डर्निंग पर एक कॉलम सतत तौर पर प्रकाशित किया जा रहा है, इस कॉलम को वरिष्ठ लेखक और बागवानी के प्रति समर्पित महेश बंसल जी, इंदौर, मप्र लिख रहे हैं, ऐसे आलेख आप प्रकृति दर्शन पत्रिका में सतत तौर पर देख सकते हैं। पत्रिका पाने के लिए आप यहां कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं। पत्रिका में बोनसाई को लेकर काफी महत्वपूर्ण आलेख और इंटरव्यू प्रकाशित हुए हैं इनमें काफी महत्वपूर्ण जानकारियां हैं। 

बोनसाई बनाना

हम विशेषज्ञों की मानें तो सबसे पहले बोनसाई के लिए उपयुक्त पौधे को गमले में उगाया जाता है फिर उसके बाहरी भाग की कांट-छांट इस प्रकार करते हैं कि वांछित शैली के अनुसार पूर्व निर्धारित आकार दिया जा सके। जड़ों की कांट-छांट कर इसे रोप दिया जाता है। बोनसाई हेतु बीज से तैयार पौधे ठीक रहते हैं। 

बोनसाई की शैलियां- अवश्य पढ़िएगा

हम इंटरनेट के युग में है और खोजने पर आपको बोनसाई को लेकर काफी जानकारियां उपलब्ध हो जाएंगी यदि आप इन्हें अपने आंगन या छत पर जगह देना चाहते हैं तो यह अब आसान है। जापान के बोनसाई विशेषज्ञों की मानें तो बोनसाई को लगभग 13 तरह से उगाया जा सकता है।
1. सीधे वृक्ष- इसमें तने सीधे ऊपर की ओर पतले, मुख्य तने में चारों ओर की शाखाएं तने से 90 डिग्री का कोण बनाते हुए ऊपर बढ़ती हैं। चीड़, सिल्वर ओक, फर आदि के लिए यह शैली उपयुक्त है।
2. दो तने वाले वृक्ष- पौधों में मिट्टी की सतह से ही प्रति वृक्ष के दो तने बढ़ने दिए जाते हैं। तनों की ऊंचाई अलग-अलग होती है। इसे जापानी भाषा में सोकन कहते हैं।
3. अनेक तने वाले वृक्ष- एक जड़ से 6 या अधिक तने ऊपर सीधे बढ़ने दिए जा सकते हैं।
4. सिनुअस- अनेक तने विकसित होने दिए जा सकते हैं।
5. तिरछा बोनसाई- मुख्य तना जमीन से 45 डिग्री कोण पर झुका हुआ सीधा बढ़ता है।
6. ब्रूम- तना सीधा पर मध्य तने से निकलने वाली दूसरी शाखाएं केवल दो विपरीत दिशाओं में बढ़ने दी जाती हैं। इससे वृक्ष का रूप पंखे के समान हो जाता है।
7. खुली जड़ वाले वृक्ष- तना जमीन की सतह से 90 डिग्री या 45 डिग्री के कोण पर ऊपर की ओर बढ़ता है, साथ ही जड़ें भी मिट्टी के ऊपर बढ़ती हुई दिखाई देती हैं। इस शैली में पौधा लगाते समय पौधे की जड़ों को मिट्टी के अंदर ना डालकर ऊपर की ओर खुला रखकर चारों ओर बालू रख देते हैं।
8. कैस्केड- मुख्य तने को आधा झुका दिया जाता है। इसे गमले के पैंदे से नीचे तक झुकाया जाता है।
9. इकाडा वृक्ष- मुख्य तने को मिट्टी की सतह तक झुकाकर दो-तीन स्थानों पर शाखाओं को विकसित होने दिया जाता है।
10. विण्ड स्वेप्ट- वृक्ष भूमि की सतह से 90 डिग्री कोण का निर्माण करता है और साथ ही मुख्य तने से निकलने वाली शाखाओं को एक ही दिशा में बढ़ने दिया जाता है ताकि ऐसा प्रतीत हो कि शाखाएं वायु के झौके से प्रभावित हो गई हैं।
11. वृक्ष समूह- एक गमले में अनेक वृक्ष उगाए जाते हैं। इसके लिए चपटे, उथले व बड़े गमले प्रयोग में लाए जाते हैं।
12. लहराता बोनसाईः एक या दो मुख्य शाखाएं गमले की मिट्टी की सतह से तिरछी निकली हुई होती हैं।
13. चट्टानी बोनसाईः गमले की मिट्टी की सतह पर पुराने पत्थर अथवा चट्टान के टुकड़े रख दिए जाते हैं ताकि उन पर वृक्ष की जड़ें फैल जाएं। 

बोनसाई पौधे ऑनलाइन उपलब्ध हैं 

बोनसाई के प्रति जिन्हें दीवानगी है आप उनसे एक बार मिलिएगा अवश्य। आप उनके गार्डन तक पहुंचें और बोनसाई को देखें और करीब से पहुंचकर समझें। यदि आपका मन है कि आप बोनसाई को लगाना चाहते हैं, बोनसाई आपकी भी दीवानगी का हिस्सा है तो यकीन मानिए कि अब यह कतई मुश्किल नहीं है क्योंकि बोनसाई ऑनलाइन अमेजन पर भी उपलब्ध है, आर्डर कीजिए आपके घर पहुंच जाएगा लेकिन मेरी मानिए तो एक बार विशेषज्ञों की सलाह लीजिए और फिर अपने आंगन में बौने पौधों का संसार पूरी खुशी से बसाईये।
 

संदीप कुमार शर्मा, 
संपादक, प्रकृति दर्शन 



सोर्स- 
(प्रकृति दर्शन, राष्ट्रीय मासिक पत्रिका) (मैजिक ब्रिक्स) (विकिपीडिया) 


 

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7 Comments

  1. सादर आभार संदीप जी आप और महेश भाई जी का यही प्यार तो हम सभी प्रकृति प्रेमियों को उत्साहित करता रहता है।🙏
    नये आलेख में फिर से प्यार मिला ,सादर धन्यवाद।

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