धन्य है हमारी संस्कृति और पावन है हमारी प्रकृति। कैसा अदभुत संसार है। हमारे पर्व मौसम के बदलने के साक्षी होते हैं। सूर्य की दिशा, उसके नए रास्ते और उससे हमारे जीवन में परिवर्तन। ये सब सुखद जीवन चक्र है जिसे हम स्वीकारें या नकारें लेकिन ये सब यूं ही स्वतः संचालित होता है। हम पढ़ लिख कर बेशक शब्द ज्ञान में बेहद आगे हो गए हैं लेकिन हम प्रकृति को नहीं पढ़ पाए। उसके सबक और ज्ञान के आगे सब अधूरा है, जो इसे पढ़ पाया वो मूल के आरंभिक बिंदु को महसूस कर पाया है। हम उस तत्व को समझने की बेहतर ताकत रखते हैं क्योंकि हम भारतीय हैं।