धन्य है हमारी संस्कृति और पावन है हमारी प्रकृति। कैसा अदभुत संसार है। हमारे पर्व मौसम के बदलने के साक्षी होते हैं। सूर्य की दिशा, उसके नए रास्ते और उससे हमारे जीवन में परिवर्तन। ये सब सुखद जीवन चक्र है जिसे हम स्वीकारें या नकारें लेकिन ये सब यूं ही स्वतः संचालित होता है। हम पढ़ लिख कर बेशक शब्द ज्ञान में बेहद आगे हो गए हैं लेकिन हम प्रकृति को नहीं पढ़ पाए। उसके सबक और ज्ञान के आगे सब अधूरा है, जो इसे पढ़ पाया वो मूल के आरंभिक बिंदु को महसूस कर पाया है। हम उस तत्व को समझने की बेहतर ताकत रखते हैं क्योंकि हम भारतीय हैं।
9 Comments
काश ये बातें सारे भारतीय समझते । अफसोस होता है उनकी बुद्धि पर जो ऐसी बातों को ढकोसला और अंधविश्वास कहते हैं ।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका संगीता जी।
Deleteजी बहुत आभारी हूं आपका कामिनी जी।
ReplyDelete''हमें गर्व है कि हम भारतीय हैं,'' यह कह कर ही हम अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर देते हैं ! भारतीयता क्या है यह समझने की कभी कोशिश ही नहीं करते !
ReplyDeleteजी यही समझने की आवश्यता है क्योंकि हम अपने आप को ही भूल गए हैं...आभार आपका गगन शर्मा जी।
Deleteकाश हम अपनी संस्कृति को संभाल कर अगली पीढ़ी तक पहुंचा पायें।
ReplyDeleteसुंदर।
जी ये बहुत ही गंभीर विषय है जिस पर सोचा जाना चाहिए। आभार आपका
Deleteसंदीप जी हम अगली पीढ़ी की बात तो करते हैं,पर अपनी संस्कृति का दोहन करने में हम भी पीछे कम नही हैं ।
ReplyDeleteसच कहा आपने...लेकिन जो कुछ भी है हमें बेहतर की ओर अग्रसर होना चाहिए उम्मीदों को साथ लेकर। आभार आपका जिज्ञासा जी।
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