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धन्य है हमारी संस्कृति

 


धन्य है हमारी संस्कृति और पावन है हमारी प्रकृति। कैसा अदभुत संसार है। हमारे पर्व मौसम के बदलने के साक्षी होते हैं। सूर्य की दिशा, उसके नए रास्ते और उससे हमारे जीवन में परिवर्तन। ये सब सुखद जीवन चक्र है जिसे हम स्वीकारें या नकारें लेकिन ये सब यूं ही स्वतः संचालित होता है। हम पढ़ लिख कर बेशक शब्द ज्ञान में बेहद आगे हो गए हैं लेकिन हम प्रकृति को नहीं पढ़ पाए। उसके सबक और ज्ञान के आगे सब अधूरा है, जो इसे पढ़ पाया वो मूल के आरंभिक बिंदु को महसूस कर पाया है। हम उस तत्व को समझने की बेहतर ताकत रखते हैं क्योंकि हम भारतीय हैं। 

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9 Comments

  1. काश ये बातें सारे भारतीय समझते । अफसोस होता है उनकी बुद्धि पर जो ऐसी बातों को ढकोसला और अंधविश्वास कहते हैं ।

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    1. जी बहुत आभार आपका संगीता जी।

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  2. जी बहुत आभारी हूं आपका कामिनी जी।

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  3. ''हमें गर्व है कि हम भारतीय हैं,'' यह कह कर ही हम अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर देते हैं ! भारतीयता क्या है यह समझने की कभी कोशिश ही नहीं करते !

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    1. जी यही समझने की आवश्यता है क्योंकि हम अपने आप को ही भूल गए हैं...आभार आपका गगन शर्मा जी।

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  4. काश हम अपनी संस्कृति को संभाल कर अगली पीढ़ी तक पहुंचा पायें।
    सुंदर।

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    1. जी ये बहुत ही गंभीर विषय है जिस पर सोचा जाना चाहिए। आभार आपका

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  5. संदीप जी हम अगली पीढ़ी की बात तो करते हैं,पर अपनी संस्कृति का दोहन करने में हम भी पीछे कम नही हैं ।

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  6. सच कहा आपने...लेकिन जो कुछ भी है हमें बेहतर की ओर अग्रसर होना चाहिए उम्मीदों को साथ लेकर। आभार आपका जिज्ञासा जी।

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