मैंने जब से रामराज्य को पढ़ना आरंभ किया है एक बात स्पष्ट हो गई कि रामराज्य को लिखने और पढ़ने से कठिन उसकी समीक्षा है, इसे समीक्षा कतई नहीं कहूंगा। मैंने महसूस किया है रामराज्य पढ़़ते समय आप रामराज्य जी रहे होते हैं और यदि इसे हम एक पुस्तक मानते हैं तो यह मान लीजिए कि यह शब्द, साहित्य, मनन, चिंतन, नेह के नए शीर्ष बुनती है। एक और बात आरंभ में ही कहना चाहता हूं कि इस पुस्तक के लेखक आशुतोष राणा जी एक अभिनेता हैं, लेकिन यह उनके लेखन का जादूई अंश है कि आप इसे पढ़ते हुए इतने गहरे खो जाते हैं कि उनकी छवि और उनका अपना निजी आकर्षण आपके मनायोग पर हावी नहीं होता क्योंकि आप रामराज्य जी रहे होते हैं, मेरा अनुभव है कि रामराज्य को पढ़ते समय आप उस राज्य के निवासी बन जाते हैं, जैसे सबकुछ आप देख पा रहे हैं, सुन पा रहे हैं, जी पा रहे हैं और जिसे आप कभी स्पर्श कर सकते हैं। अनुभूति अपार होती है वह उस शीशे की भांति ही है जिसके दोनों ओर देखा जा सकता है लेकिन जो देखने की नजर रखता है, जो अनुभूति में जीता है उसे उस शीशे में वही नजर आता है जो वह देखना चाहता है। हम आशुतोष राणा जी की रामराज्य जब भी पढ़़ रहे होते हैं तब एक बात आपको बार-बार महसूस होगी जैसे वे सूत्रधार हैं जो रामराज्य दिखा रहे हैं, उस युग की जिम्मेदारी इस युग में निभा रहे हैं।
अब महसूस होने लगा है कि बहुत कुछ विचारों में आया ही नहीं, छूट सा गया था। रामराज्य में जो पात्र हैं वह समझे ही नहीं जा सके, उन्हें महसूसा ही नहीं जा सका। रामराज्य का आरंभ एक स्वीकारोक्ति है कि आप राम के करीब रहना पसंद करते हैं, उनके विचारों को आप धैर्य से सुनना चाहते हैं क्योंकि राम जब अपने राज्य में वार्तालाप करते हैं तब आप उन्हें एक राजा के तौर पर समझने से पहले उन्हें उन हिस्सों में देखना और जीना पसंद करते हैं जिनमें वह एक सहज और हम जैसे मानव जीवन के विषयों को छू रहे होते हैं। मेरी समझ से राम का राजा हो जाना और राज्य का संचालन करना आखिरी खंड इसलिए रहा होगा क्योंकि वहां तक मर्यादाओं का ज्ञान और अर्थ की समझ का अंकुरण अपनी शीर्षावस्था में पहुंच जाता है। रामराज्य में राम आपको अपने बहुत करीब महसूस होते हैं, वह आपकी बात, आपके विषय पर बात नजर आते हैं।
वैसे तो पूरी रामराज्य आपको गहन चिंतन तक पहुंचाती है, मैं बहुत संक्षिप्त में अपने मन की कहूंगा। हम माता कैकेयी पर आते हैं, आशुतोष राणा जी की रामराज्य को जीते समय हमारी उन्हें लेकर धारणा की जटिल बर्फ भी पिघलने लगती है, आप समझ सकते हैं आप स्वीकार करते हैं कि कैकेयी उस राज्य और राम के लिए क्या थीं और उस युग में कैकेयी का होना जब राम मर्यादा लिखने आए थे, अंकुरित करने आए थे उस युग में कैकेयी को कुछ और लिखना था, कुछ ऐसा जिसे केवल उनके कोई और संभव नहीं कर पाता, राम और कैकयी का वार्तालाप एक माता और पुत्र के वार्तालाप से बढ़कर एक गुरु और शिष्य का वार्तालाप अधिक महसूस होता है क्योंकि मां पहली गुरु है और कैकेयी सर्वथा वही महिला हैं। यहां आप रामराज्य में कैकेयी और राम के संवाद में बहुत ऐसा खरा वार्तालाप पाएंगे जिनमें आप स्वीकृति की मुहर लगाते जाएंगे क्योंकि राम का वो राज्य मर्यादाओं को अंकुरण कर पाने के लिए पहचाना गया तो उसके पीछे राम से पहले कैकेयी को रखा जाएगा। उस पूरे वार्तालाप को पढ़ने से अधिक महसूस करने के सुख की मैं व्याख्या नहीं सकता क्योंकि मैं पहले ही कह चुका हूं कि रामराज्य की समीक्षा बेहद कठिन है। कैकेयी मां थीं, मजबूत थीं और एक राज्य की रानी भी सर्वथा वही थीं जो उस दौर के सबसे कठिन अध्याय को जीकर दोबारा राज्य को गढ़ सकती थीं और उन्होंने वैसा किया भी। मैं एक ओर बात कहना चाहता हूं कि कई बार विचार जिद कर रहे हैं कि मैं उस रामराज्य के वार्तालाप को यहां लिख दूं लेकिन मैं आपको उस सुख से वंचित नहीं करना चाहता जो आपको उस समय को जीते हुए, उस पुस्तक को पढ़ते हुए मिलने वाला है, केवल इतना कहना चाहता हूं कि कैकेयी थीं तो राम राज्य संभव हो पाया, वरना केवल राज्य होता वो राम के बिना और उनकी मर्यादाओं के बिना सूखा और बंजर सा।
यहां मैं यह भी कहना चाहूंगा कि मेरा यकीन है कि रामराज्य को पढ़ने और जीने के बाद आप भी आशुतोष राणा से जिद करेंगे और अपनी बात कहना चाहेंगे कि वे लेखक और चिंतक तौर पर अधिक गहरे हैं और हमें पहले वे इसी तौर पर स्वीकार्य हैं।
हमने महसूस किया कि रामराज्य में सुपर्णा भी थी और शूपर्णखा भी...दोनों के अंतर को भलीभांति महसूस भी किया और गहरे चिंतन को जीया कि शूपर्णखा के सुपर्णा हो जाने का वक्त और अवसर कैसा रहा होगा...? लिखने को इतना है कि एक और मोटी सी किताब तैयार हो जाएगी...। मन ठहरने से मना कर रहा है लेकिन मैं जो महसूस कर चुका हूं उसे मैं अपने मित्रों और परिचितों तक पहुंचा रहा हूं, अपने जैसे विचारों को जीने वालों से अनुनय कर रहा हूं कि रामराज्य पढ़ि़येगा लेकिन उसे केवल शाब्दिक नहीं बल्कि उसे अनुभूति में संग्रह कीजिएगा। अनुभूति का सागर बहुत गहरा और गहन होता है, उसके भीतर केवल अनुभूति ही अनुभूति है, ऐसा ज्ञान, ऐसा मौन, ऐसी गहराई जिसे आप छूना चाहेंगे और अग्रसर होते जाएंगे, चलते जाएंगे। बहुत है लिखने को, हनुमान, लंका, पंचवटी ओह...सभी में हम उस राज्य के हो जाते हैं, उस राज्य और अपने आराध्य श्रीराम का साथ पाते हैं, उनका स्नेह उनका दुलार महसूस कर सकते हैं। हर अध्याय जब लिखा गया तब मुझे लगता है उसे असंख्य बार जीया गया और उसे जीकर लिखा गया, मुझे लगता है कि इससे बाहर निकलने में लेखक को भी बहुत कठिनाई हुई होगी क्योंकि रामराज्य यदि आपके हिस्से आएगा तब आप भी उससे सहज होकर दूर होना नहीं चाहेंगे, यह एक ऐसी यात्रा है जिस पर आप एक बार चल पढें़गे तब उसी में ठहर जाएंगे, क्योंकि रामराज्य यहां कल्पना में नहीं हकीकत में हमारी अनुभूति में आकार ले चुका होता है। मैंने सालों बाद कुछ ऐसा जीया है जिसे मैं अपने जीवन के सबसे खूबसूरत पलों में से एक मानता हूं, मैं उसे कभी भी जीवन से दूर नहीं करना चाहूंगा, क्योंकि रामराज्य मेरे गहरे जा बसा है और मैं उसका नागरिक होना चाहूंगा क्योंकि मैं उसे उतनी ही गहराई से जी पाया हूं।
लेखनी को विराम देने से पहले मैं लेखक और हमारे सभी के बेहद करीब रहने वाले आशुतोष राणा जी को बधाई देना चाहता हूं, मैं उनसे करबद्व निवेदन करना चाहता हूं कि रामराज्य के अभी और अंक लिखे जाएं...ईश्वर आपको गहराई और नेह प्रदान करे...।
बहुत सी शुभकामनाएं शाब्दिक नहीं हो सकतीं, आप महसूस कीजिएगा कि मैं आपसे वह कह नहीं पा रहा हूं जो इस पुस्तक के बाद आपसे कहना चाहता हूं...आप साहित्य की धरोहर हैं और रामराज्य इस कलयुग में महसूस हुआ, उसकी अनुभूति भी हमें धन्य कर देती है...।
प्रयास करूंगा रामराज्य पर बहुत सा जो मन में कहीं ठहर गया है यदि उसे शाब्दिक आकार दे पाया तो आप तक अवष्य पहुंचाने का प्रयास करूंगा।
आभार


2 Comments
बहुत सुन्दर आलेख।
ReplyDeleteआपका बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी। मुझे लगता है कुछ विषय होते हैं जिन पर आप लिखते हुए अपने बहुत पास पहुंच जाते हैं, ये विषय मेरे लिए वैसा कुछ है। आभार आपका
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