तुम्हें याद है वो पहली सुबह साथ-साथ। घर की बालकनी पर रेलिंग पर तुम कितनी देर तक उस आकाश में पंछियों को देखती रहीं थीं। तुम्हारा उन्हें देखकर बार-बार मुस्कुराना मेरे अंदर कुछ कुरेद रहा था। कुरेद रहा था कि तुम अकेला महसूस कर रही थीं मेरे साथ होने पर भी। मैं उन पंछियों को देखता और तुम्हें भी। मैं मन में तुम्हारे उस रीतेपन को उस दौर में जी रहा था, समझने का प्रयास कर रहा था तुम्हें और तुम्हारी खामोशी को। तुम उस दौरान पहली बार साथ आई थीं, मन में बहुत सारे सवाल लिए। मैं भी पंछियों से बतिया रहा था कि दे दो ना...तुम मेरी ओर से जवाब। तुम तो जानते हो मुझे, तुमने तो देखा है इसी बालकनी पर अकेले घंटों इंतजार में जागते हुए। मैं पंछियों से कह रहा था कि बता दो ना उसे कि तुम यूं अकेली कहां हो, साथ हो और हमेशा रहोगी। वो दिन आज भी याद है वे पंछी तुम्हारे और मेरे बीच सेतू बने थे, मुस्कुराते हुए। आज भी तुम बालकनी पर साथ होती हो, पूरी तरह साथ। वो तुम्हारा पहली बार साथ आना अब तक साथ है, याद है। खोजता हूं तो पाता हूं कि उस दिन उन पंछियां ने मेरा भरोसा तुम तक पहुंचाया है, वे मुझे और तुम्हें जानते हैं, ये जीवन यूं ही बुना जा सकता है, अपनी खुशियां के धागों से।
2 Comments
बहुत सुन्दर और हृदय स्पर्शी।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका आदरणीय शास्त्री जी।
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