कौन किसे पनपने देना चाहता है, कौन किसी को जगह देगा.. कुछ मुट्ठीभर अपवाद लोगों को छोड़ दीजिए... बहुत धक्का मुक्की है, कोई किसी को सहन नहीं करना चाहता... आपका हुनर और मन साफ रखते हैं तो मेरी मानिए पीपल हो जाईये... पीपल से जीवन दर्शन सीखिए...विपरीत हालात में वो अपनी जिद पर बिना किसी से ये उम्मीद लगाए कि कोई अंकुरण के लिए जगह और जल देगा... उग जाते हैं, बिना किसी की परवाह के बढ़ते जाते हैं, कोई हटाता है, फिर उग जाते हैं...सोचिये इतने महत्वपूर्ण वृक्ष को जब पनपने में इतना संघर्ष है तो हम तो इंसान हैं... पीपल जिद्दी वृक्ष है लेकिन जीतना जानता है, हारना उसने सीखा ही नहीं... इसीलिए उसे श्रीकृष्ण का नेह भी मिला... उन्होंने कहा वृक्षों में मैं पीपल हूँ...। जीतना चाहते हैं तो पीपल हो जाईये... और उसे बचाईये...
6 Comments
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 02 फरवरी को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका बहुत आभार दिग्विजय जी....।
Deleteप्रेरक रचना...
ReplyDeleteजी बहुत आभार...।
Deleteसार्थक एवं प्रेरक रचना
ReplyDeleteजी बहुत आभार...।
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