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दीवार


 बिस्तर पर कराहती हुई मां अपने बेटों से बोली देखो यदि मुझे कुछ हो जाता है तब तुम एक साथ रहना, कभी लड़ना मत। दोनों भाईयों ने मां की बात सुनी और उसके हाथ अपने हाथों में रख लिए। छोटा बेटा मां के सिर पर हाथ रखकर कहने लगा मां चिंता मत कर हम कतई नहीं लडेंगे। मां की आंख से आंसु झरने लगे उसने दीवार की ओर इशारा किया और उसके प्राण पखेरु उड गए। दोनों बेटे मां के इशारे का समझ नहीं पाए। क्रियाकर्म के बाद दोनों साथ बैठे थे और उस दीवार की ओर देखने लगे। छोटा बोला दीवार में कुछ है जो मां बताना चाह रही थी, बडे़ ने कहा हां लेकिन क्या होगा उसके अंदर ? उन्होंने दीवार खोदनी आरंभ कर दी। पूरी दीवार खोदने के बाद भी उन्हें कुछ नहीं मिला तो खीझ उठे, मां भी पता नहीं क्या बताना चाह रही थी और बिना बताए ही चली गई। गिरी हुई दीवार को बनाने की बात आई तो छोटे ने बड़े से कहा और बडे़ ने छोटे से। दोनों एक दूसरे पर टालने लगे और बात कहासुनी तक पहुंच गई। दोनों लड़़ने लगे तभी सरपंच वहां से निकल रहे थे दोनों ने पूरी घटना सरपंच को बताई।

सरपंच ने कहा कि दीवार को क्या सोचकर तुमने गिराया था कि उसमें कोई खजाना निकलने वाला है या तुम्हारे मां के गहने निकलने वाले हैं, दोनों भाईयों ने हां कहते हुए सिर हिलाया। सरपंच ने कहा तुम दोनों मूर्ख हो तुम्हारी मां कहना चाहती थी कि वो जो एक घर को दो कमरों में बांटने वाली दीवार है उसे गिरा देना ताकि तुम हमेशा एक साथ रह सकोगे। दोनों भाईयों की आंखें खुल गई और उन्होंने दीवार को हमेशा के लिए हटा दिया।

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8 Comments

  1. बहुत भावपूर्ण बोध कथा है संदीप जी। बड़ों का कहा हमेशा अनमोल होता और उनके ना रहने पर ही कोई उनका महत्व समझ में आता है।

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  2. बेहतर करने का प्रयास है, लेखन हमें हमेशा बेहतर होने में मदद करता है। आपका बहुत आभार...

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  3. बहुत ही सुंदर कहानी।
    मर्मस्पर्शी।
    सादर

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    1. जी बहुत आभार आपका अनीता जी।

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  4. सार्थक सृजन...
    हृदयग्राही कथा हेतु साधुवाद 🙏

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    1. बहुत आभार वर्षा जी...।

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  5. दृष्टिकोण बुद्धि के आधार पर।
    प्रेरक कहानी।
    सादर।

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