.. हम भी अजीब हैं... कोई खिलाड़ी दोहरा शतक मार जाए तो हम उसे हीरो बना देते हैं, ऐसे कसीदे पढ़ते हैं कि वो बेचारा ओंधे मुंह जमीन पर आ गिरता है...। यही हाल राजनीति में भी है...हम नेताओं को जनप्रतिनिधि होने का अहसास करवाएं उन्हें हीरो न बनाएं... काहे हम यूं बावले हो जाते हैं... कोई जीतता है जश्न मनाएं लेकिन ये न हो कि उसे ये महसूस होने लगे कि सामने जनता नहीं शरणार्थी हैं...। हम कमजोर और असहाय दिखाते हैं तभी तो वे हमारी भावनाओं का चीर हरण करते हैं... हमने कभी अपना मुखर चेहरा उन्हें दिखाया है क्या..? दरअसल हमारी मानसिकता गुलामी कीहो गई है... तभी तो अपराधी और बिना पढ़े लिखे लोग हम पर राज करते रहते हैं पीढियों तक...। ओफ...बंद करो ये राग...जीत चाहिए थी हमने दे दी...अब उन्हें सोचना चाहिए कि मुझे पांच साल का हिसाब देना है...। कंजूस मतदाता बन जाईये... अपने मत का हिसाब मांगिये... वरना यूं ही नाम बदलते रहेंगे और हम छले जाते रहेंगे...। आजादी के इतने साल बाद भी हम मूलभूत समस्याओं में उलझे हैं... नेता. एक शौचालय भी बनाता है तो बोर्ड टंगवा देता है... और हम खुश हो जाते हैं... शरणागत होना छोड़िए और हम आजाद भारत के नागरिक हैं। वे राजसत्ता पाते ही बेलगाम इसलिए हो जाते है क्योंकि हम ऐसे है... चुनाव में आपके बाजू में होते हैं और जीतने के बाद वे ऊपर मंच पर और जनता जमीन पर...कितनी जलदी सीन बदलता है..। सोचिएगा जरूर... ये सभी पार्टियों और नेताओं के लिए है...
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