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हमारे पास जलपुरुष हैं



दुनिया के लिए पानी क्या है, पानी को लेकर दुनिया का भविष्य क्या है ये हम सभी से छिपा नहीं है, ये बहुत स्पष्ट है कि पानी पर यदि मौजूदा मानसिकता का अनुसरण किया गया तब भविष्य बेपानी होना तय है। पानी और प्रकृति जैसे गंभीर विषयों पर दुनिया नेतृत्व विहीन हालत में है क्योंकि जिनके हाथों में सत्ता है वे प्रकृति और पानी पर अमूमन बहुत गहन संस्कार और समझ नहीं रखते और जिनके पास पानीदार संस्कार और विचार हैं वह दुनिया भर में सत्ताओं से जूझ रहे हैं लेकिन उन्हें समझा नहीं पा रहे हैं। प्रकृति और पानी पर विचारों का एक गहरा कुहासा सा है जिसे भेद पाना सरकारों के बस की बात नहीं है। हालात बिगड़ते जा रहे हैं। 

अब ऐसे हालात में क्या किया जाए, कौन राह दिखाए और किस तरह इन हालातों पर जीत के सबक एकत्र किए जाएं। दुनिया भर में राजनीति शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बनती जा रही है, ऐसे में प्रकृति, जल, जंगल और नदियों की बातें कौन करे।  

ऐसे हालातों में एक जवाब ये भी सूझता है कि दुनिया में मुट्ठी भर लोग हैं जो प्रकृति और जल के लिए जमीनी कार्य में जुटे हैं और ये दुनिया उन मुट्ठी भर साहसी लोगों की ओर उम्मीद से देख रही है। 

दुनिया के हिस्से भविष्य का गहराता जलसंकट है, लेकिन हमारे पास जलपुरुष राजेंद्रसिंह जी हैं, वे हमारी धरती पर सूख चुकी नदियों को दोबारा बो रहे हैं, वे नदियों को जाग्रत करने के संस्कार बो रहे हैं, वे नदियों की उम्मीद बो रहे हैं, वे बो रहे हैं एक ऐसा समाज जो अंदर से पानीदार है और हमेशा पानीदार रहना चाहता है। वे सूखे में भरपूर पानी बो रहे हैं, वे सूखे में उम्मीद वाली फसल बो रहे हैं। वे दुनिया भर में भारत की प्रकृति के प्रति समझ और संस्कार के विचार बो रहे हैं, वे सूख चुकी आंखों में खुशियां बो रहे हैं। दुनिया उन्हें जलपुरुष के नाम से जानती है लेकिन हमारे लिए वे ‘पानी वाले बाबा’ हैं जो पानी के लिए बने हैं, जो नदियों के लिए बने हैं जिनके विचारों में हरदम पानी और उम्मीद प्रवाहित होती हैं, वे हारते नहीं हैं, थकते भी नहीं हैं, वे जानते हैं कि अपने जीवन का जो लक्ष्य लेकर वे चल रहे हैं उसकी राह बेहद सूखी है, दरारों से पटी हुई है, झुलसती हुई है, आसान नहीं है लेकिन वे जानते हैं कि उनके साथ अब हौंसलों का पूरा का पूरा समन्दर है जिसकी लहरें वे युवाओं के साथ हर उम्र और वर्ग में देख रहे हैं। 

वे गंगा पर चिंतित हैं वे नदियों के प्रदूषण से आहत हैं, वे नदियों के सूख जाने और नदियों के प्रति जागरुकता की कमी से दुखी हैं, लेकिन वे मुस्कुराते हैं जब भी कोई नदी प्रयासों से धरा पर लौट आती है, वे मुस्कुराते हैं जब भी कोई समूह कहीं झुलसती धरती पर पानी बो देता है, वे मुस्कुराते हैं जब पानीदार प्रयास सूखे में भी अंकुरित हो जाते हैं, वे मुस्कुराते हैं जब धरा और किसानों के बीच रिश्ता निभाने बारिष समय पर आ जाती है....। वे मुस्कुराते हैं जब कोई किसान अपने खेत देखकर मुस्कुराता है, वे तब भी मुस्कुराते हैं जब कहीं पानी के संस्कार खिलखिलाते हैं।

जी हां दोस्तों, मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित आदरणीय राजेंद्रसिंह जी सालों से पानी और प्रकृति पर काम कर रहे हैं, उन्होंने धरा और जल के लिए क्या किया है ये भी हम सभी जानते हैं लेकिन हमें ये आत्म पड़ताल भी अवष्य करनी चाहिए कि राजेंद्रसिंह जी ने जो संस्कार हमारे अंदर बोए हैं वे किस तरह अंकुरित हो रहे हैं, उनका प्रभाव कितना गहरा है। 

(फोटोग्राफ तरुण भारत संघ से साभार) 

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4 Comments

  1. बहुत कुछ पढ़ा है राजेन्द्र जी के बारे में इनका जीवन एक निस्वार्थ जल साधक का रहा है जिसनें मृत भूमि में प्राणवायु का संचार किया और जनमानस में जल संस्कार बोया |अपार वैभव को त्यागकर कोई दूसरों के लिए कैसे जीता है उसकी जीवंत मिसाल राजेन्द्र जी के मनोबल और हौंसले को लाखों सलाम |

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    1. जी रेणु जी बहुत आभार आपका। आदरणीय राजेंद्र जी इस धरा के पुत्र हैं....। आभार आपका।

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  2. संदीप जी बहुत स्पीड से लेख दाल रहे हैं | अन्यथा ना लें तो आपसे निवेदन है कि पाठकों को समय दीजिये | आपके लेख अनमोल हैं | हार्दिक शुभकामनाएं|

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  3. जी रेणु जी, आपकी सलाह अनमोल है, आपका आभार। ध्यान रखा जाएगा।

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