भारत में कृषि को यदि उसकी आर्थिक व्यवस्था का मूल माना जाता रहा है तो पशुपालन उस ग्रामीण बहुल हिस्से के शक्तिशाली हाथ माने जा सकते हैं। पशुपालन देश के ग्रामीण हिस्सों में कृषि के साथ साथ फलता फूलता गया, कृषि में बेशक आधुनिक उपकरणों का प्रवेश हो चुका है लेकिन पशुपालन अब भी गांवों की, ग्रामीणों की और मध्यमवर्गीय परिवारों की रीढ़ माना जा सकता है। यही कारण है पशुपालन को लेकर समय समय पर बेहतर कार्य करने की योजनाओं पर कार्य किया जाता रहा है, इसे प्रमोट करने के लिए अनेक तरह की योजनाएं भी संचालित हैं। हम यहां जानने का प्रयास करेंगे कि अच्छी पशुपालन पद्धतियों से किसानों को कैसे लाभ होता है?(how do good animal husbandry practices benefit farmers)  पशुपालन क्या है (what is animal husbandry ) देश के विभिन्न प्रदेशों में पशुपालन को लेकर क्या कुछ संभव हो पा रहा है। पशुपालन के आंकड़ों को समझें तो वह बहुत सा सच स्पष्ट करते हैं कि यह मुख्य धारा की तरह ही है भारत में आर्थिक विकास की।

 

पुरातन ज्ञान भी महत्वपूर्ण है

दुनिया में भारत देश यदि कृषि की पुरातन व्यवस्था को लेकर पहचाना जाता है तो यहां के पशुपालन को लेकर भी पुरातन ज्ञान का भी महत्व है। दुनिया के लिए विचारणीय बात यह है कि मौसम के भरोसे भारतीय किसान अब तक भी निर्भर है, लेकिन यहां इस विषय के मूल को समझने का प्रयास भी होना चाहिए था कि प्राकृतिक संकट के दौर के पहले बुजुर्गों ने मौसम के परिवर्तन को लेकर अपने अंदर इतनी अधिक समझ विकसित कर ली थी कि वे बेहद सहजता से बात को समझ जाया करते थे कि बारिश कब होनी है, कब से मानसून आएगा, कब तक शीत लहर चलेगी, तापमान कहां जाएगा और मौसम के बदलावों को लेकर वे अपने पूरे परिवार और समाज को जागरुक रखा करते थे, समय के बदलने के साथ प्राकृतिक आपदाएं बढ़ने लगीं, विज्ञान पर हम अधिक निर्भर होने लगे, यहां यह कहना जरुरी है कि सूचनाओं की सटीक जानकारी लेकर विज्ञान ने अपने प्रति भरोसा बढ़ाया लेकिन एक वह पुरातन ज्ञान, अनुमान, आभास की शक्ति, आभास के बल पर मौसम को पढ़ने की ताकत, मौसम के बदलने को लेकर जो भी अनुमान लगाए जाते थे, उस दौर में वे भी सटीक ही साबित होते थे, सोचने की बात है कि वह क्या था, खैर यह एक अलग विषय है और इस विषय पर भविष्य में सार्थक आलेख आएगा लेकिन वह दौर पशुपालन को विकसित करने का भी दौर था

रिसर्च की भी आवश्यकता है

 प्राकृतिक बदलावों का असर, पर्यावरण के प्रभावित होने का असर कहीं न कहीं पालतू पशुओं पर भी अवश्य पड़ा है। इस बात के रिसर्च की भी आवश्यकता है कि पालतु पशुओं के व्यवहार, स्वास्थ्य, क्षमता अथवा उम्र पर क्या अंतर आए हैं हालांकि इस दिशा में संभवत कुछ कार्य अवश्य चल रहा होगा लेकिन मुझे लगता है कि जब पशुपालन को हम देश की एक बड़ी आबादी के आर्थिक तौर पर अनिवार्य होने का आधार मानते हैं तो इस दिशा में कुछ और हटकर भी कार्य होना चाहिए।

पशुपालन भारत को लेकर एक बहुत बड़ा विषय है

यहां उस पुरातन ज्ञान के आधार, उसकी महत्ता को भी खोजा जाना चाहिए क्योंकि उस दौर के पशुपालक इस समय मौजूद हैं, उनसे चर्चा कर काफी कुछ उस पुराने को तलाशकर आज के दौर के संकटों पर बात होनी चाहिए। पशुपालन भारत को लेकर एक बहुत बड़ा विषय है, इसे ग्रामीणों की जीवन रेखा या ग्रामीण हिस्से की लाइफ कहा जा सकता है, अब तक मूलतः हो यह रहा है कि इस प्रमुख आधार पर गहनता से अध्ययन को बेहतर बनाया जाना चाहिए था लेकिन बीते वर्षो में सुधार को लेकर बहुत महत्वपूर्ण निकलकर सामने नहीं आ पाया है। यह निश्चित है कि देश के विभिन्न राज्यों में पशुपालन को लेकर योजनाएं बनाई भी जा रही हैं और अब तक बनाई भी गई हैं लेकिन पशुपालक और योजना के बीच अपडेट रहने और सहजता से सुधार की बातों को समझ लेने की खाई अब भी बनी हुई है।

अन्य देशों की तुलना में हमारे पशुओं का दुग्ध उत्पादन कम है

हम आंकड़ों को समझें तो यह भी समझ आता है कि पशुपालन कितना महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। भारत देश में लगभग 121.8 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन करके विश्व में प्रथम स्थान पर रहा है, इसमें उत्तर प्रदेश इसमें अग्रणी है। यह उपलब्धि पशुपालन से जुड़े विभिन्न पहलुओं जैसे- मवेशियों की नस्ल, पालन-पोषण, स्वास्थ्य एवं आवास प्रबंधन इत्यादि में किए गये अनुसंधान एवं उसके प्रचार-प्रसार का परिणाम माना गया है लेकिन आज भी कुछ अन्य देशों की तुलना में हमारे पशुओं का दुग्ध उत्पादन अत्यन्त कम है और इस दिशा में सुधार की बहुत संभावनाएं है। दुनिया के कुछ देश हैं जो पशुपालन और दुग्ध उत्पादन में बहुत आगे हैं, हमें उन्हें समझना होगा, उनके पास की तकनीक पर बात करनी होगी, हमारे यहां के पशुओं के मौजूदा पर्यावरण संकट के दौर में व्यवहार में परिवर्तन पर भी बात करनी होगी।

 

कृषि उत्पाद में पशुपालन का विशेष योगदान

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एवं पशुपालन का खासा महत्व है, घरेलू कृषि उत्पाद में पशुपालन का विशेष योगदान है इसमें दुग्ध उत्पाद की सर्वाधिक भूमिका  है। भारत में विश्व की कुल संख्या का 15 प्रतिशत गायें एवं 55 प्रतिशत भेड़ हैं और देश के कुल दुग्ध उत्पादन का 53 प्रतिशत भैंसों व 43 प्रतिशत गायों और 3 प्रतिशत बकरियों से प्राप्त होता है। आंकडों की बात करें तो हम उनमें केवल एक संख्या को समझ सकते हैं लेकिन हकीकत में यदि हम उस पूरे सिस्टम को समझेंगे तो पशुपालन भारतवासियों के मूल आधार का महत्वपूर्ण हिस्सा है। 

 

पशुपालन को भी बढ़ावा मिलेगा

छोटे, भूमिहीन तथा सीमान्त किसान जिनके पास फसल उगाने एवं बड़े पशु पालने के अवसर सीमित है, छोटे पालतु पशुओं जैसे भेड़-बकरी, मुर्गीपालन से उनके आर्थिक पक्ष के लिए महत्वपूर्ण आधार है, विश्व में हमारा स्थान बकरियों की संख्या में दूसरा, भेड़ों की संख्या में तीसरा एवं कुक्कुट संख्या में सातवां है। कम खर्चे में, कम स्थान एवं कम मेहनत से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए छोटे पशुओं का अहम योगदान है। यहां ध्यान देने की बात यह भी है कि यदि हम इनसे सम्बंधित उपलब्ध नवीनतम तकनीकियों का व्यापक प्रचार-प्रसार करते हैं तो निःसंदेह ये छोटे पशु गरीबों के आर्थिक विकास में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं इसके अलावा पशुपालन को भी बढ़ावा मिलेगा।

 

अपार सम्भावना हैं

भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर है। छोटे व सीमांत किसानों के पास कुल कृषि भूमि की 30 प्रतिशत जोत है। इसमें 70 प्रतिशत कृषक पशुपालन व्यवसाय से जुड़े है जिनके पास कुल पशुधन का 80 प्रतिशत भाग मौजूद है। स्पष्ट है कि देश का अधिकांश पशुधन, आर्थिक रूप से निर्बल वर्ग के पास है। भारत में लगभग 19.91 करोड़ गाय, 10.53 करोड़ भैंस, 14.55 करोड़ बकरी, 7.61 करोड़ भेड़ तथा 68.88 करोड़ मुर्गी का पालन किया जा रहा है। भारत 121.8 मिलियन टन दुग्धउत्पादन के साथ विश्व में प्रथम, अण्डा उत्पादन में 53200 करोड़ के साथ विश्व में तृतीय तथा मांस उत्पादन में सातवें स्थान पर है। यही कारण है कि कृषि क्षेत्र में जहाँ हम मात्र 1-2 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त कर रहे हैं वहीं पशुपालन से 4-5 प्रतिशत। इस तरह पशुपालन व्यवसाय में ग्रामीणों को रोजगार प्रदान करने तथा उनके सामाजिक एवं आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने की अपार सम्भावनायें हैं।

 परिवर्तन को भी समझना जरुरी है

हम पशुपालन को बेहतर बनाने पर कार्य कर सकते हैं, इसके लिए किसानों को, ग्रामीण हिस्से के रहवासियों को उन सभी योजनाओं पर बारीकी से ध्यान देना होगा, योजनाओं के बारे में जानकारी भी रखनी होगी, समझने के लिए संबंधित विभागों जाना होगा, इसके अलावा मवेशियों की बीमारियों को लेकर पूर्व में सतत उनका परीक्षण आवश्यक है, यहां लापरवाही हो जाने के कारण दिक्कतें बढ़ती हैं, यदि पूर्व में ही मवेशियों के सतत परीक्षण को यदि प्लान का हिस्सा बना लिया जाएगा तब पशुपालक को दिक्कतें नहीं होंगी, इसके अलावा मवेशियों के स्वभाव के परिवर्तन को भी समझना जरुरी है, इसके लिए आप विशेषज्ञों अथवा हमारे देश के पुराने बुजुर्गां से भी बात कर सकते हो, पशुपालन को लेकर काफी योजनाएं हैं लेकिन उनका फायदा किस तरह मिले और हमारे अपने पशुधन की रक्षा और सुरक्षा हम कैसे करेंगे यह सोचने का प्रमुख विषय है।

 

संदीप कुमार शर्मा, 

प्रकृति दर्शन, राष्ट्रीय मासिक पत्रिका

 


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