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गंगा नदी देश की जीवन रेखा है


देश की सबसे लंबी नदी गंगा पर बढ़ रहा है खतरा 

गंगा का महत्व भारत के लिए क्या है यह आप प्रत्येक भारतीय से समझ सकते हैं क्योंकि गंगा को हम केवल नदी नहीं बल्कि उसे अपनी मां का दर्जा देते हैं, गंगा (ganga river) का वैष्विक महत्व भी है क्योंकि यह अदभुत गुणों वाली नदी है इसकी जैव विविधता भी पूरी दुनिया के लिए खोज का विषय रही है। गंगा भारत के जीवन रेखा कहलाती है, खेती को सींचती है, जमीन को उर्वरक बनाती है और इस देश के बहुत बडे़ भूभाग को पानीदार रखने की जिम्मेदारी उठाती आ रही है। गंगा बदल रही है, गंगा (ganga river) के प्रदूषण पर सभी चिंतित हैं, सुधार को लेकर महत्वकांक्षी योजनाएं सरकार द्वारा बनाई गई हैं बावजूद इसके गंगा पूर्ववत रखना आसान नहीं है, बेहद कठिन चुनौती है, उद्योग बहुल शहरों में गंगा प्रदूषण के खतरनाक स्तर को पार कर चुकी है। 

गंगा नदी (ganga river) भारत के असंख्य लोगों के मन से होकर भी गुजरती है, गंगा स्नान पावन माना गया है, यह एक मान्यता है लेकिन गंगा बीते कुछ सालों में खुद कितनी प्रदूषित हो गई यह वर्तमान और भविष्य के लिए गहरी चिंता का विषय है। 

गंगा नदी (ganga river) भारत के उत्तराखंड राज्य में गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है, उत्तरी भारत से होकर बहती हुई अंततः बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। गंगा नदी लगभग 2,525 किलोमीटर (1,569 मील) लंबी है। खास बात यह भी है कि गंगा नदी दुनिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है (longest river in india) और भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक, आर्थिक और पारिस्थितिक जीवन को महत्वपूर्ण बनाने में प्रमुख भूमिका निभाती है।  

गंगा में जलीय जीव और उसकी जैव विविधता 

जहां तक हम गंगा के बेसिन की बात करें तो यह दुनिया के सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक माना जाता है। एक विशाल और विविध परिदृश्य को समेटे हुए है। हिमालय की बर्फीली ऊंचाइयों से लेकर विशाल गंगा के मैदानों तक, यह नदी देश की जीवन रेखा है। यह कहा जाता है कि गंगा का बेसिन एक समृद्ध जैव विविधता का केंद्र है, जिसमें मछलियां उभयचरों और प्रवासी पक्षियों की कई प्रजातियाँ निर्भर हैं। प्राकृतिक तौर पर गंगा की जैव विविधता पूरी दुनिया के लिए खोज का विषय रही है, यहां जलीय जीवों और जैव विविधता पर दुनिया भर में रिचर्स हो रहे हैं, खास बात यह भी है कि गंगा के पानी की अदभुत शक्ति और निर्मलता उसे इस दुनिया की बाकी नदियों से अलग बनाती है।

गंगा का महत्व

अपने भौगोलिक महत्व से परे, गंगा लाखों लोगों के लिए गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व भी रखती है। इसे हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है यही कारण है कि गंगा किनारे भारत देश में तट धार्मिक नगरी बसीं, तट बनाए गए और उन नगरों का विकास भी हुआ। कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) पर गंगा नदी में स्नान का विशेष महत्व है। इसके अलावा गंगा कृषि को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान देती आई है, सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो फसलों और आजीविका को बनाए रखती है। गंगा किनारे वाले हिस्से अच्छी खेती और पैदावार के लिए पहचाने जाते हैं। गंगा के बिना देश के एक वृहद भूभाग पर खुशहाली की कल्पना संभव नहीं है।

मंडराता ख़तरा 

अपने सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व के बावजूद गंगा को एक भयानक प्रदूषण - का सामना करना पड़ता है। औद्योगिक नगरियों में अपशिष्टों के अनियंत्रित निर्वहन, अनुपचारित सीवेज जैसी लापरवाहियों ने इस पवित्र जल की नदी को विश्व स्तर पर सबसे प्रदूषित नदियों में बदल दिया है। गंगा भारी धातुओं, रसायनों और प्लास्टिक कचरे सहित विभिन्न प्रदूषकों का भंडार बनती जा रही है, जो गहरी चिंता का विषय है। इस प्रदूषण के दूरगामी परिणाम आने हैं, मछलियों की संख्या में गिरावट और जलीय आवासों के क्षरण की जानकारियां विभिन्न रिसर्च में सामने आई हैं, यह चिंता का विषय है। नदी के पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में है। इसके अलावा, प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करता है, क्योंकि गंगा के किनारे रहने वाली आबादी पीने, खाना पकाने और स्नान के लिए इसके ही पानी पर निर्भर हैं। इस मंडराते खतरे पर चिंता भी है और इसके सुधार के प्रयास भी आरंभ हुए हैं लेकिन बावजूद इसके गति बहुत उत्साहजनक नहीं है। 

संरक्षण की दिशा में प्रयास 

भारत की जीवनरेखा गंगा में प्रदूषण की गंभीरता को समझते हुए सरकार ने अपने स्तर पर प्रमुख योजनाएं भी बनाई और चलाई जा रही हैं,  भारत सरकार द्वारा शुरू की गई नमामि गंगे परियोजना का उद्देश्य प्रदूषण से बचाव, अपशिष्ट जल प्रबंधन में सुधार करना सहित अनेक बेहतर कार्य किए जा रहे हैं, हालाँकि यह भी सच है कि इन प्रयासों के बावजूद गंगा को उसकी पुरानी स्थिति में पहुंचाने के प्रयास की राह लंबी और बेहद चुनौतीपूर्ण है।

आगे का रास्ता 

गंगा के संरक्षण के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, सभी को गंभीर होना होगा, नदी के महत्व और उससे मिलने वाले जीवन की तुलना में जो कुछ उसे लौटाया गया वह एक बार गहन चिंतन का विषय है। औद्योगिक अपशिष्टों के उपचारित करने, सीवेज उपचार बुनियादी ढांचे को उन्नत करने और बेहतर खेती को बढ़ावा देने के प्रयासों पर कार्य होना चाहिए। गंगा को स्वच्छ रखने के महत्व और प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में आमजन को जागरुक किया जाना चाहिए। जन जागरूकता अभियान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। गंगा नदी एक नाजुक मोड़ पर है। इस पवित्र और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण नदी को संरक्षित करने की अनिवार्यता के साथ बढ़ती आबादी की जरूरतों को संतुलित करना एक कठिन चुनौती है। गंगा एक स्थानीय चिंता का विषय नहीं है, बल्कि एक वैश्विक चिंतन का विषय है, इस नदी को बचाने के लिए केवल सरकारी प्रयासों का होना काफी नहीं है इसके लिए हरेक व्यक्ति, नदी किनारे वाले हिस्सो में कारोबार, उद्योगों सहित आम जन को गंभीर होकर तत्काल सुधार के अभियान को तेज करना होगा। 


संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति  दर्शन  

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