हमारे संसार में पानी के बाद हवा भी बिकने लगी, पानी का कारोबार पूरी तरह से स्थापित और सफलता पा चुका है, इसके लिए बाज़ार ने भयाक्रांत करने वाला पैंतरा अपनाया, प्रकृति और उसके पानी को दूषित ठहराया, बीमार कर देने का लांछन लगाया और अपना पानी प्लास्टिक की बोतल बंद कर हमें थमा दिया। हम कितने समझदार हैं कि पानी के मूल स्वरूप और उसकी हकीकत को समझने के पहले ही बोतलबंद पानी के कारोबार पर भरोसा कर बैठे...पीढ़ियां जिस पानी को पीकर जिंदगी की कई खूबसूरत नज़ीर लिख गईं, हमने उसे अनदेखा कर कारोबार और बाज़ार के सामने नतमस्तक हो जाना बेहतर समझा...। ये जो बाज़ार है इसने हमारी समझ पर कब्जा कर लिया है वह जानता है कि हम स्वभाव से अब वैसे हो गए हैं जैसा बाज़ार हमें बनाना चाहता था। मूल को मिटाकर बाज़ार अर्थ तंत्र को विकसित कर रहा है, यकीन मानिए आप अपने आप को जितना जानते हैं उससे कई गुना अधिक बाज़ार आपको जानता है...। मैं मूल पर लौटता हूँ जब नदियों का जल है, कुएँ हैं, बावड़ी हैं, तालाब हैं, नौले हैं, पोखर हैं तो उनका पानी क्या आपकी प्यास नहीं बुझा सकता और ये किसने प्रचारित किया कि प्रदूषण बढ़ रहा है, पानी से बीमारियां हो रही हैं, इलाज पर खर्च करने की जगह बाज़ार का पानी खरीदो या पानी को साफ करने के वाली मशीन को रसोई में स्थान दो...। हमने मान लिया कि बाज़ार कह रहा है तो सही है और हमने रसोई में रखे मटके फोड़े, तांबे के कलश ओंधे रख बाज़ार की समझ वाला पानी पीने लगे...। हममें से बहुत बड़ा वर्ग तो इतना असहाय है कि वह अब मूल पानी. हकीकत में पचा नहीं पा रहा है... उसकी प्यास केवल बाज़ार ही बुझा सकता है...। चलिए पानी प्रकृति से छीन अब बाज़ार के हिस्से आ गया, अब हम बाजारू पानीदार हैं...। 

बाज़ार को जब लगा कि पानी अब ब्रैंड होकर बिक रहा है तब नया किया जाए, अब आक्सीजन पर बाज़ार सक्रिय हो गया। अब मर्ज जो हो रहे हैं उनमें दम घुटने की पीड़ा को आपके सामने पेश किया जा रहा है, पीड़ा के बाद इसी बाज़ार ने प्रचारित किया कि हवा दूषित है, अब आपको जीना है तो आक्सीजन सिलेंडर पीठ पर लटकाने होंगे, बस क्या था अब बाज़ार हमारी पीठ पर भी लद गया, हमारी समझ का शिकार करने के बाद बाज़ार अब हमें पूरी तरह पंगु बनाना चाहता है, देखिए स्वस्थ जीवन और खुली हवा में जीने वाली दुनिया में आक्सीजन को लेकर कैसा हाहाकार मचा है।

अब राज्यों की अपनी अपनी आक्सीजन हैं, कोई किसी को नहीं देना चाहता। कैसी दुनिया है जब जीवन और सिस्टम ही वेंटिलेटर पर हो तब आदमी और बाज़ार की आक्सीजन की लूटमार जैसे हालात कोई आश्चर्य नहीं हैं..। प्रकृति की आक्सीजन में कभी सिलेंडर की आवश्यकता ही नहीं थी, जबसे ये छलिया बाज़ार हमारे जीवन में, घरों में आया है हमें सिलेंडर भरने पड़ रहे हैं। मैं तो इतना ही जानता हूँ प्रकृति की आक्सीजन में कभी ऐसी पाबंदियां नहीं रहीं, कोई टैक्स नहीं, कोई पैकैज नहीं...। अब भई आखिर में क्या ये भी लिखूं की बाज़ार और बाज़ारवाद की मायावी दुनिया से बाहर आईये और प्रकृति को पहचानिए क्योंकि प्रकृति ही आपको इस चपल बाज़ार के शिकंजे से मुक्त करवा सकती है, अपना पानी, हवा, जीवन इस प्रकृति के पास हैं उन्हें बेहतर बनाईये, ये बाज़ार हमारी दुनिया को कलुषित बना रहा है इसकी ओर पीठ कीजिए और अपने मन की सुनिए....। 

एक सवाल उठाना चाहता हूँ, बाज़ार को प्रकृति में दाखिल होने से रोकिये वरना हम पंगु होकर जल्द ही बिखर जाएंगे...।