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सालों जीवित रही झुमके की वह ख्वाहिश



मैं झुमके तिराहे पर ठहर गया और फोटोग्राफी करने लगा, देख रहा था कि झुमका भारी भी था और काफी ऊंचाई पर बेहद करीने से लगाया गया था। कानों में गीत गूंजा और मुस्कुराहट फैल गई- झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में...। देखता रहा और सोचता रहा कि फिल्म के इतने साल बाद जब यहां एक तिराहे पर ये झुमका लगाया गया तब भी शहर उस पहचान को कितने करीने से अपने मन में बसाए हुए है। साधना और सुनीलदत्त अभिनीत फिल्म के उस गीत ने बरेली को झुमका और उस दौर में खासी पहचान दी, लेकिन झुमका यहां कितनी गहराई से मन में बसा रहा, हालांकि फिल्म में वह गुम चुका था लेकिन हर बरेलीवासी के मन में कहीं जाकर वह एक सुरक्षित जगह पर लटका रहा, सालों बीत गए, फिल्म पुरानी हो गई, गीत अब भी जीवित है और जीवित रही झुमके की वह ख्वाहिश। आखिरकर एक गीत जीत गया, एक ख्याल जीत गया, एक फलसफा जीत गया जब बरेली ने उस गुमे हुए झुमके से कई गुना वजनी झुमका अपनी पहचान पर सुशोभित कर लिया आज बरेली के प्रवेश मार्ग पर आपको वह गीत दोबारा ताजा हो उठेगा...जाईयेगा तो देखियेगा कि शब्दों और भावों का वह झुमका असल में बरेलीवासियों के लिए क्या मायने रखता है...? 1966 में सुनील दत्त और साधना अभिनीत फिल्म ‘मेरा साया’ आई तब किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि फिल्म की आभासी दुनिया में गुम हुआ झुमका असल में एक दिन इस शहर को मिलेगा और कई गुना विस्तार पाकर। हालांकि भावनाओं का कोई आकार नहीं होता इसलिए उसके आकार पर बहस बेमानी है लेकिन एक भाव जन्मा और यहां आकार पा गया। जी हां, बरेली को झुमका भी मिला और उस गीत के बोल भी अमर हो गए। अब एक तिराहे पर भारीभरकम झुमका शोभायमान है। आप अगर दिल्ली से लखनऊ या लखनऊ से दिल्ली हाईवे से गुजर रहे हैं तब इस पर आपकी नजर अवश्य जाएगी क्योंकि ये बरेली के प्रवेश मार्ग पर ही जीरो पाइंट पर आपका ध्यान खींच लेगा। सोचियेगा कि जब साधना अभिनीत फिल्म में वो चर्चित गीत लिखा गया था- झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में तब वह केवल एक गीत था लेकिन एक शहर झुमके की पहचान पा गया, सालों बाद ये मांग उठाई गई कि बरेली के झुमके को लेकर कुछ होना चाहिए। शहर में झुमका लगाने की पहल 90 के दशक में हुई थी तब बीडीए ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से दिल्ली-बरेली मार्ग 24 पर ‘झुमका’ तिराहा की मांग की थी, बरेली विकास प्राधिकरण ने शहर में एनएच 24 पर जीरो प्वाइंट पर एक भारी भरकम झुमका लगाने का प्लान बनाया और आखिरकार बीते वर्ष फरवरी में यह मांग पूरी हो गई। इस तिराहे पर 2 क्विंटल (200 किग्रा) का झुमका 14 फीट ऊंचे खंभे पर लगाया गया है। ऐसा बताया जाता है कि इसे बनाने में पीतल और तांबे का इस्तेमाल किया गया है। इसकी लागत भी लाखों में है और गुड़गांव के कलाकार ने इसे तैयार किया है। झुमका गिरा, लेकिन उसे मिलने में बेशक सालों लग गए लेकिन वह आज बरेली की शान है। 


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9 Comments

  1. कोरोना के प्रकोप के बीच झुमका चौराहे के ऊपर लिखा यह सुंदर और आनंद की अनुभूति कराता आपका यह लेख, बहुत बढ़िया और अच्छा लगा ।सादर शुभकामनाएं।

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    1. जी बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी। आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धन करती है।

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  2. क्या बात है !!झुमके की गुमसुदगी का तो पता था लेकिन ये एक शहर को इतनी प्यारी पहचान बन गई है इससे अनभिज्ञ थी।
    सुंदर और रोचक जानकारी,सादर

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    1. जी बहुत आभार आपका कामिनी जी।

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  3. बहुत खूब संदीप जी ! आपके लेख से ऐसी जानकारी मिली जो हमारे जैसे जिज्ञासुजनों के लिए संजीवनी सरीखी है | बरेली का झुमका फ़िल्मी गीत में तो अमर है ही पर इस झुमके को शहरे -बरेली के वास्तविक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करने वाले महानुभाव को लाखों सलाम जिसने इतनी सुंदर परिकल्पना को यथार्थ में ढाला | कोटि आभार इस सुंदर , रोचक लेख के लिए |

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    1. जी बहुत आभार आपका रेणु जी। आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धन करती है, आपकी प्रतिक्रिया और आपके शब्दों से मैं बहुत कुछ सीख रहा हूं। आभार हूं आपका।

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  4. वाह ! एक नई और रोचक जानकारी मिली। आभार।

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