हम कितने सहज हैं ना कि सबकुछ भूल जाते हैं, हमारी इस दुनिया पर चाहे कितनी भी आपदाएं आएं, कितने भी गहरे दर्द का सैलाब आए हम सब भूल जाते हैं, लेकिन क्या ये भूल जाना और भूल जाने के बाद सच खत्म हो जाता है। सच तो हमारी स्मृति और इतिहास में दर्ज हो गया, साथ ही दर्ज हो गया हमारा उन घटनाओं और आपदाओं पर अमानवीय होकर उन्हें भुला देना। बहुत सी घटनाएं हैं जिन्हें यादकर आज भी हमारे अंदर सिरहन का संचार हो उठता है लेकिन कुछेक ऐसी भी होती हैं जो हमारी स्मृति में कहीं उलझकर रह जाती हैं। यहां भी मैं उन्हीं में से एक आगजनी का जिक्र कर रहा हू। अमेजन के जंगलों में महीनों लगी आग ने कोरोना से पहले सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा था क्यांकि जब हमने जले हुए, झुलसे हुए, हमारी दुनिया के सबसे नायाब बुत देखे थे, ओह...आज तक वह सब मेरी स्मृति के तारों में कहीं उलझा सा है, बार-बार उन मासूम वन्य जीवों की बेबसी और उनका जीते जी हमेशा के लिए बुत हो जाना मुझे सताता है कि आखिर हम अपनी इस दुनिया को ऐसा क्यों बनाना चाहते हैं, क्यों हम इसे ऐसा चेहरा दे रहे हैं जो इसका कतई नहीं है। सोचिएगा कि जंगल में भागते हुए आगे की लपटों ने किसी तार में फंसे किसी वन्य जीव को जब अपनी चपेट में लिया होगा तब दर्द की पराकाष्ठा और उसी रुदन का शीर्ष कहां होगा। हम तो नहीं सुन पाए उनकी वो चीख, उनका वो दर्द लेकिन हम उसे याद रख लेते और दोबारा जंगल तक आग नहीं पहुंचने देते ये भी तो हमारा प्रायश्चित था लेकिन ऐसा कहां हो पाया...। जंगल हमसे अधिक मानवीय है, जंगल हमसे अधिक निर्मल और श्वेत है, सोचियेगा कि हमारी आबादी वाला हिस्सा अमानवीय कैसे हो गया, हमें अपने लिए, अपने सुखों के लिए पैर पैसारने हैं और हम जंगलों को मिटाने चल दिए। ये कैसी आग है हमारे अंदर जो जंगल को जला रही है, वन्य जीवों को बुत बना रही है, उनके खुशहाल जीवन को कोयला बना रही है, ये आग यकीन मानिये कि ये आग जब हवा का रुख पाकर हमारी ओर होगी तब बुत बनने की बारी हमारी होगी...। वह जंगल की आग और बुत बने वन्य जीवों का चेहरा, उनकी बेबसी, उनकी चीख, उनका रुदन सबकुछ मेरे कानों तक पहुंच पाया उस समय भी जब मैंने उसे लेकर पहली बार लिखा और आज भी पहुंच रहा है क्योंकि आज भी मैं उन्हें कराहता पा रहा हूं अपनी विकसित दुनिया में...। हम एक ऐसी नेक दुनिया से थे जहां जंगल क्रूर माना जाता था क्योंकि वहां के कायदे बहुत स्पष्ट थे लेकिन अब वह समय आ गया है जब जंगल मानवीय हो गया है और हमारी बस्ती क्रूरतम चेहरे के तौर पर पहचानी जा रही हैं। सोचियेगा कि बदलना चाहिए या नहीं....?
यहां मैं एक बार फिर जिक्र करना चाहूंगा आस्ट्रेलिया के एक परिवार का। स्टीव इर्विन एक वन्य जीव संरक्षण कर्ता थे उनके परिवार ने ये उस दौर में जब दुनिया अपने विकास की ओर अग्रसर होकर हर्षित थी और अमेजन के जंगल दहक रहे थे तब उनके परिवार ने वन्य जीवों को उस आग से बचाने का कार्य किया था। उनकी बेटी बिंडी जो एक अस्पताल चलाती हैं उन्होंने खुद जानवरों के कुछ फोटोग्राफ शेयर करते हुए दुनिया का ध्यान इस आग और वन्य जीवों की हालत पर दिलवाया था। क्या परिवार है वह और क्या है हमारा विश्व परिवार...। तब खबरों से ये भी जानकारी मिली थी कि विंडी, उनके परिवार और उनकी टीम ने 90हजार वन्य जीवों की जान बचाई थी...। सोचियेगा कि विंडी कहां से आई है और हम कहां रह रहे हैं...?
फोटोग्राफ गूगल से साभार।
5 Comments
आदरणीय आभारी हूँ... प्रकृति पर गहन होने का महत्वपूर्ण समय है...।
ReplyDeleteरंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं आ0
ReplyDeleteआभार...रंगोत्सव की शुभकामनाएं आपको भी।
Deleteसार्थक सृजन
ReplyDeleteबहुत आभार आपका ओंकार जी...।
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