बचपन से गंगा को लेकर एक गीत सुनते हुए बडे़ हुए हैं...गंगा तेरा पानी अमृत...झर-झर बहता जाए...युग-युग से इस देश की धरती तुझसे जीवन पाए। ये गीत गंगा के गौरव और हमारे गंगा के प्रति नेह को दर्शाता है, हमारा मन ये गीत अब भी गंगा किनारे पहुंचकर अवश्य गुनगुनाता है.। सवाल उठता है कि जब हमें गंगा से इतना नेह है, हमारा इतना समर्पण है... तब वर्तमान हालात ये सवाल चीख-चीखकर क्यों उठा रहे हैं कि आखिर हमारे नेह का ये आवरण क्यों दरक रहा है....? 


गंगा का किनारा है ही ऐसा....बैठते ही आप आध्यात्म में खो जाते हैं...मन काफी देर पहले आपको एकाग्र करता है उसके बाद वो उस सुरम्य प्रकृति के नेह में खोने लगता है...सोचता रहा, गंगा के बिना कैसा होगा भविष्य...कितना मुश्किल होगा वो समय.. जब भी गहन होकर सोचता हूं मन हारने लगता है, लेकिन विचार दोबारा मन को अपने लक्ष्य पर ले आते हैं...। गंगा कहीं नहीं जाएगी, हम सभी मिलकर उसे कहीं नहीं जाने देंगे, वो धरती पर है और सदियों रहेगी...बेशक ये मेरा भरोसा है, लेकिन मौजूदा हालात कुछ कहते हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। नदी इस सृष्टि के लिए धरा पर उतारी गई है और उसे धरा पर रहना चाहिए..। 

गहरे चुभते सच...

- जब गंगा से इतना नेह है अब उसके जल के प्रदूषित होने की पीड़़ा हमें अंदर तक नहीं हिला रही है क्यों ? 

- हमारे मन में ये कसक उठनी चाहिए कि हम जिसे मां कहते हैं उसकी परवाह के प्रति ईमानदार नहीं हैं...उसे प्रदूषित होता देखकर भी खामोश हैं क्यों ?

- देखकर कितना अजीब लगता है कि जिस गंगा में हम स्नान करके पवित्र होते हैं, पुण्य कमाते हैं और उसी में सामने से बहती हुई पॉलीथिन को उठाकर बाहर निकालने के लिए हमारे हाथ स्वेच्छा से आगे नहीं बढते...क्यों ? 

- नहाने के बाद हम उसी जल से अपने पहने हुए वस्त्र भी धोने लगते हैं...हमारा मन धिक्कारता नहीं...क्यों ? 

- घाटों पर गंदगी देखकर हम अक्सर आगे बढ़ जाते हैं...कभी अपना प्रयास नहीं करते क्यों ? 

1. हमें मां गंगा चाहिए, 

2. गंगा का नेह चाहिए, 

3. गंगा का जल चाहिए, 

4. हमें गंगा से मोक्ष भी चाहिए,.?

 

- हमने कभी सोचा है कि उस चैतन्य मां गंगा को हमसे क्या चाहिए...? गंगा को हमसे एक वादा चाहिए....कि अबकी जब भी गंगा के दर्शनों के लिए आएं तो कम से कम एक घंटा सफाई और सेवा कार्य के लिए अपनी स्वेच्छा से अवश्य देंगे। हमें ये सोच बदलनी होगी कि गंगा और अन्य नदियों की सफाई केवल सरकार की जिम्मेदारी है...। हम सरकार का सफाई कार्य में साथ दे सकते हैं, देना चाहिए...।  

- ये गंगा केवल नदी नहीं हमारे आध्यात्म का चरम है, वो हमारी अनुभूति का शीर्ष है...। ये गंगा का जल जब हमारे घर और दालान को शुद्ध कर सकता है तो हमारे विचारों को ये प्रभावित न करता हो...मानना मुश्किल है। बहती हुई नदी ही हमारी विरासत को संरक्षित रख सकती है...।