ये सुनने में निश्चित ही अजीब लग रहा होगा लेकिन तासीर की बात करें तो बर्फ गर्म होती है, लेकिन महसूस ठंडी होती है...। वाह रे परमपिता गजब की सृष्टि बनाई है एकदम हाथी के दांतों की तरह...। सोचता हूँ ऐसा क्यों किया गया होगा, क्या सीधे तौर पर समझाया जाना मुश्किल था...? कोई तो बात रही होगी जो सबकुछ बहुत सीधा सा नहीं है...। प्रकृति रचते समय इनकी सुरक्षा पर भी गहन विचार हुआ होगा ताकि सबकुछ बिना किसी परेशानी के स्वयं ही संचालित होता रहे...लेकिन ऐसा नहीं हो पाया... मौसक चक्र बाधित हो चुका है...। सोचा क्यों न बर्फ की नब्ज़ पकड़ उसकी हरारत ही पूछ ली जाए...ऐसा इसलिए क्योंकि गर्म तासीर वाली बर्फ की प्रकृति या मिजाज में गर्मी आखिर कैसे बढ़ गई...। कभी नवबंर में गिरने वाली बर्फ अब दिसंबर और जनवरी या साल में कभी भी गिर है क्यों...? तासीर की गर्मी उसके स्वभाव में आ पहुंची क्योंकि हमनें उसके दर्द को समझा ही नहीं... बेशक अब भी हम नासमझ जैसे ही हैं... बर्फ गिरते ही हम उसका लुत्फ उठाने की पहले सोचते हैं, उसके बदलते स्वभाव से हमें कोई लेना देना नही है...। आखिर कब तक अंजान रहने का जश्न मनाएंगे...। आपको बताना चाहूंगा कि एक ऐसी संस्था है जो आइस मैमोरी प्रोजेक्ट चला रही है और बर्फ के सेंपल एकत्र कर रही है ताकि उन्हें सुरक्षित रखकर उन पर रिसर्च की जा सके... तब जब दुनिया से बर्फ के पहाड़ खत्म हो जाएंगे...। मौजूदा हालात देखें तो तासीर और हरारत समझनी जरूरी है क्योंकि बर्फ हमेशा नहीं होगी हमारे बीच...।
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ऐसी भयावाह स्थिति को सोचकर आत्मा कंपित होती हैं!!!
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