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आओ पत्ते सा उड़कर देखें


मैंने कभी पेड़ से टूटे पत्तों से उनकी मरज़ी नहीं पूछी, एक खलिश सी मन में है कि टूटकर जब हवा हमारी मंजिल का निर्धारण करने लगे तब हम वाकई अपने कैसे हो सकते हैं? ये पत्ते हो जाना, पेड़ से छूट जाना, तन्हा हो जाना, कहीं कुछ चटकने की आवाज़, कहीं कुछ नए जुड़ने की शुरुआत होती है।  हां मुझे सबसे अधिक उस पत्ते के गिरने पर लगने वाली अंदरूनी चोट सताती है। वो कशमकश, वो नया रास्ता, वो हवा के रुख को महसूसने का सबक----आह कितना मन को हिलाने वाला होगा वो सब----। आओ पत्ते सा उड़कर देखें।

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1 Comments

  1. क्या बात है!!! -----
    आओ पत्ते सा उड़कर देखें।!!!!

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