पानी की कीमत हमें नहीं पता और लगता है हमें जाननी भी नहीं है, हम अब तक उस अमृत को प्लास्टिक की थैलियों में कैद कर रहे हैं, सभा स्थलों या पारिवारिक कार्यक्रमों में वो प्लास्टिक की थैलियों में कैद पानी अक्सर देखा जा सकता है। ...। ओह कितनी बर्बादी...पानी पीने के बाद वो पाउच फैंक दिए जाते हैं और कोई उन्हें साफ करके एक साथ जला देता है, पर्यावरण को कितना गहरा नुकसान है। मैंने सभाओं में इन पानी के पाउचों की बर्बादी का आलम कई बार देखा है, हर बार लगा कि आखिर कौन जगाएगा हमें, कैसे और कब तक जागेंगे हम...। समझ से परे है क्योंकि हमें अपने कर्मो का आंकलन नहीं करना है, सुख देखना है, राहत देखनी है...लेकिन जो आफत हमारी ओर तेजी से अग्रसर है उसे लेकर हम आंखें मूंद लेना ही पसंद करते हैं...। ये जो फोटोग्राफ है ये भी राजनैतिक सभा के दौरान का ही है...हालांकि दुख तब होता है जब नीति बनाने वाले ही अनदेखी करते नजर आएं...। राजनीति कैसी है, क्यों है वो अब तक क्यों सुधार नहीं पाई यहां ये बहस का विषय नहीं है, यहां चिंतन का विषय है कि आखिर आम लोग इस तरह की लापरवाही के विरोध में स्वेच्छा से कब उठेंगे, कब जागेंगे....। आखिर ये पानी की कैद क्यों है और क्या इस तरह पानी को कैद कर हम आजाद रह पाएंगे, सुखी रह पाएंगे....नहीं हमारे कंठ और हमारा भविष्य हमेशा के लिए सूख जाएगा। जागिये कि पानी हमारे बच्चों को भी चाहिए। करवाईये उसे इस तरह की कैद से आजाद।
8 Comments
आखिर ये पानी की कैद क्यों है और क्या इस तरह पानी को कैद कर हम आजाद रह पाएंगे, सुखी रह पाएंगे....नहीं हमारे कंठ और हमारा भविष्य हमेशा के लिए सूख जाएगा। जागिये कि पानी हमारे बच्चों को भी चाहिए। करवाईये उसे इस तरह की कैद से आजाद। ..बहुत ही गंभीर और चिंतनीय विषय उठाया है आपने, कहीं भी,कोई भी तंत्र गंभीर ही नही है,इस विषय को लेकर,काश इस लेख को पढ़कर ही लोगो की आंखें खुलें,आपको इतने सार्थक विषय उठाने के लिए हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई ।
ReplyDeleteजी...आभार। ये कुछ ऐसे विषय हैं जिन्हें मैं अपनी जिम्मेदारी मानता हूं... इसी उद्देश्य से मैगजीन भी निकाल रहा हूँ...। आपको मन से आभार...।
ReplyDeleteपानी की कीमत उनसे पूछनी चाहिए जो एक मटका जल के लिए आज भी मीलों चल कर जाते हैं , इस ज्वलंत समस्या पर सार्थक लेखन
ReplyDeleteपानी की कीमत वाकई वही जानता है जिसके लिए पानी उससे दूर हो चुका है। जहां आज पानी है यदि चेतना यही रही तब यकीन मानिये कि कल वे सूखे स्थान होंगे। बेहतर होगा आज जाग जाएं। आभार आपका अनीता जी।
Deleteउपयोगी आलेख
ReplyDeleteअन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।
जी बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी।
Deleteमैंने कहीं पढ़ा था कि जितना लोग बोतलबंद पानी पर खर्च करते हैं उसकी तुलना में उनसे उतना ही या उससे कहीं कम टेक्स वसूला जाए तो जल- संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण काम हो सकता है | अच्छा लेख है | फोटो वाले दृश्य तो हर नुक्कड़ और चौराहे पर बड़ी सहजता से मिल जायेंगे |
ReplyDeleteजी बहुत आभार
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