बेशक इस धरा पर रेगिस्तान के होने को लेकर हमारे तर्क सवालिया निशान खडे़ करते रहें लेकिन हकीकत ये है कि उसके होने में हमारे भविष्य को बेहतर बनाने के बेहद कठिन सबक भी कहीं न कहीं छिपे होते हैं। रेगिस्तान जिनके जीवन की राह है, जिनके जीवन का सच है जिनके हिस्से रेगिस्तान है वे जानते हैं कि पानी क्या है, पानी की कीमत क्या है, पानी की उपलब्धता और उसके उपयोग की मात्रा का अनुपात क्या होना चाहिए? रेगिस्तान के उन कठिन हालात में रहने वाले वे लोग प्रकृति और पानी के गहरे सबक हर रोज सीखते हैं या यूं कहा जाए कि ये सबक ही उनके जीवन का हिस्सा हैं। हम रेगिस्तान या मरुस्थल पर बात करने से हमेशा बचते रहते हैं, हममें से बहुत से ऐसे भी हैं जिन्हें ये विषय चर्चा के योग्य लगता ही नहीं है लेकिन क्या रेगिस्तान से जिंदगी को अलग किया जा सकता है, क्या रेगिस्तान में जिंदगी नहीं है, क्या धूल में जीवन नहीं है क्या धूल में जिंदगी के कोई सबक नहीं हैं ? बहुत से सवाल हैं, गहरे बहुत गहरे। रेत पर जिंदगी, रेत सी जिंदगी और रेत होती जिंदगी के बीच खुशियां तलाशतेलोग। बहुत कुछ ऐसा है जिसे हमें समझना नहीं चाहते, पढ़ना नहीं चाहते लेकिन देखना अवश्य चाहते हैं। रेत और रेगिस्तान भी ऐसा ही विषय है।
रेगिस्तान यदि सख्त है, उसकी धूल यदि सजा देती है, हमारा इम्तिहान लेती है तो उससे शिकायत कैसी ? रेगिस्तान में यदि जिंदगी का दर्शन तलाशा जाए तब बहुत गहरा सच सामने आता है और वह ये कि रेगिस्तान जिंदगी का हिस्सा है। हममें से हरेक रेगिस्तान को अपने अंदर जीता है क्योंकि हम ये सच जानते हैं कि रेगिस्तान चाहे हमारे अंदर हो या बाहर वह हमें सच के साथ जीना सिखा देता है। रेगिस्तान में पानी की खोज और रेगिस्तान के बीच पानी की कीमत का अहसास हमें इतना अधिक पानीदार बना देता है कि ताउम्र हम कभी सूखते नहीं है, पानीदार रहते हैं। रेगिस्तान में रेत पर पानी का अहसास मरीचिका कहलाता है लेकिन वह अहसास भी हमें काफी दूरी तय करवा देता है इसमें भी एक सबक छिपा है कि मरीचिका के पीछे प्यास होती है और प्यास हमें जीतना सिखाती है। हम रेगिस्तान में जीने वाले लोगों से जब भी मिलते हैं तब उनमें और शहरी लोगों में बहुत अंतर सहज ही नजर आने लगता है वह सूखे और रेत पर रहने के बावजूद बहुत पानीदार होते हैं, खुश होते हैं, जीना जानते हैं और पानी को पहचानते हैं लेकिन पानी के बीच रहने वाले हम न अंदर से हरे हैं और न ही उपजाऊ क्योंकि रेगिस्तान और उसके जीवट वाशिंदों को देखकर बार-बार लगता है कि एक रेगिस्तान शहरों में बहुत गहरे आकार ले चुका है और जिसमें वैचारिक और मानवीय सूखा है और सूखा भी इतना भयावह कि यदि उस सूखे ने किसी रेगिस्तान का आकार ले लिया तब यकीन मानिये कि उस दुनिया में फिर कोई दुनिया नजर नहीं आएगी, कोई पानी नहीं होगा, कोई मरीचिका नहीं होगी, कोई उम्मीद नहीं होगी। बेहतर होगा कि अपने उस शहरी सूखे के साथ हम एक बार असल रेगिस्तान देख आएं, उसे जी आएं ताकि हममें कोई मरुस्थल आकार न लेने पाए।
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