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दरवाजा और लैटर बाक्स...

दरवाजे पर टंगा लैटर बाक्स भूखा है, काफी अरसा हुआ भावना में लिपटा कोई खत नहीं आया। देख रहा हूँ वो कारोबारी जैसा सलूक करने लगा है, बिलकुल भी मिठास नहीं रही उसमें...खोलने पर कर्कश आवाजें निकालने लगा है, सच चिड़ा हुआ है...। मैं देख रहा. हूँ न पोस्ट कार्ड, न अंतरदेशीय... केवल कारोबारी स्पीड पोस्ट...। उसकी कर्कशता मुझसे नहीं है वो भावनाओं के कारोबार के नीचे दबने से बौखलाया हुआ है, यही हाल रहा तो कहीं वो ये न कह दे कि मैं भी मुफ्त में कारोबारी खतों का वजन क्यों उठाऊं... वेतन चाहिए... ओह कहां से लाऊं उसके वजूद बचाने को भावनाओं वाले खत....।

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2 Comments

  1. कहां से लाऊं उसके वजूद बचाने को भावनाओं वाले खत!
    सच है संदीप जी | नयी सदी में जो चीजें अप्रासंगिक हुई हैं उन में लेटरजैसी बदहाली किसी और की नहीं हुई शायद | उसनें भावनाओं का अथाह समन्दर देखा है आज सुखी नदी सा पड़ा है |

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  2. बहुत आभार रेणु जी।

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