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पर्यावरण और जीवन पर तम्बाकू का खतरा


विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर डब्ल्यूएचओ ने अपनी एक रिपोर्ट पर ध्यान दिलवाते हुए स्पष्ट चेताया है कि भविष्य में तम्बाकू से हो रहे पर्यावरणीय और मानव स्वास्थ्य के नुकसानों पर इसे लेकर और अधिक जवाबदेही तय होनी चाहिए। यह रिपोर्ट गहरी चिंता की लकीरें उकेरती है। तम्बाकू मानव स्वास्थ्य के साथ ही पर्यावरण के लिए कितना बडा खतरा है इसका अंदाजा इसी महत्वपूर्ण कथन से लग जाता है।

 विश्व स्वास्थ्य संगठन में स्वास्थ्य प्रोत्साहन विभाग के निदेशक डॉक्टर रूडीगर क्रेश का कहना है, “पूरे पृथ्वी ग्रह पर इधर-उधर फेंके जाने वाली चीज़ों में सबसे ज़्यादा तम्बाकू उत्पाद होते हैं, जिनमें सात हज़ार विषैले रसायन होते हैं जिन्हें नष्ट किये जाने पर वो रसायन पर्यावरण में शामिल हो जाते हैं। 

“हर साल लगभग साढ़े चार ट्रिलियन सिगरेट फ़िल्टर, हमारे समुद्रों, नदियों, शहरों के रास्तों, पार्कों, मिट्टी और तटों को प्रदूषित करते हैं। सिगरेट, धुआं रहित तम्बाकू और इलैक्ट्रॉनिक सिगरेट के कारण, प्लास्टिक प्रदूषण में भी इज़ाफ़ा होता है. सिगरेट फ़िल्टरों में माइक्रोप्लास्टिक होता है और दुनिया भर में प्लास्टिक प्रदूषण में, इसका दूसरा सबसे बड़ा स्थान है। 

दुनिया प्रदूषण को लेकर चिंतित है। सोचिएगा कि तम्बाकू उत्पाद जिनमें सात हजार विषैले रसायन होते हैं और वह हमारे पर्यावरण के लिए किस तरह संकट बन रहे हैं, यहां समझने की बात यह भी है कि पर्यावरण के लिए नुकसान पहुंचाने वाले तम्बाकू उत्पाद उस व्यक्ति के लिए कितने घातक होंगे जो इनका सेवन कर रहा है।

 आंकडे़ बेहद डराने वाले हैं इसलिए यह समझना बेहद जरुरी है कि इस महासंकट से बचना है तो तम्बाकू से समय रहते दूरी बनानी होगी और पूरी तरह से इसे ना कहने की आदत डालनी ही होगी। 

तम्बाकू हर तरह से मानव जाति और पर्यावरण के लिए बड़ा संकट बनती जा रही है क्योंकि जो इसका सेवन करते हैं वह इन्हें धरती पर यहां वहां लापरवाही से फैंक रहे हैं और इसका विपरीत असर न केवल धरती पर पड़ रहा है बल्कि इस कचरे का निपटान भी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। वैश्विक स्तर पर इस समस्या से ग्रसित देश आर्थिक तौर पर भी संकट को भोग रहे हैं। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि इन तम्बाकू उत्पादों के कूड़े कचड़े की सफाई में जो खर्च होता है उसका असर करदाताओं के जीवन पर पड़ता है। इसे लेकर भी आंकड़े भयभीत करने वाले हैं। 

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में बताया गया है कि हर साल तम्बाकू उत्पादों के कूड़े-कचरे की सफ़ाई पर चीन में लगभग दो अरब 60 करोड़ डॉलर और भारत में क़रीब 76 करोड़ 60 लाख डॉलर की लागत आती है। इस मद पर ब्राज़ील व जर्मनी में भी हर साल 20 करोड़ डॉलर से ज़्यादा की लागत आती है। अलबत्ता, फ्रांस और स्पेन जैसे देश और सैन फ्रांसिस्को व कैलीफ़ोर्निया जैसे अमेरिकी शहर अब इस क्षेत्र में कड़ा रुख़ अपना रहे हैं। 

ऐसे में यह बात स्पष्ट होती है कि ऐसे उत्पादों पर सख्ती के अलावा कोई और चारा नहीं है क्योंकि न केवल जनस्वास्थ्य को लेकर यह घातक बन रहे हैं बल्कि पर्यावरण पर भी इसका विपरीत असर हो रहा है। प्रदूषण को लेकर वैश्विक तौर पर नीतियां बन रही हैं लेकिन इसमें सख्ती आवश्यक है क्योंकि एक ओर यदि तम्बाकू को लेकर इतने अधिक विपरीत हालात हैं बावजूद इसके हम इसे यूं ही ढोए जा रहे हैं, इसे यूं ही पर्यावरण के लिए खतरा बनता देख रहे हैं। डब्ल्यूएचओ की चिंता वाजिब है और इसीलिए वैश्विक स्तर पर इसे लेकर सख्त हो जाने की आवश्यकता है।

 पर्यावरण पर विपरीत असर छोडने वाले ऐसे उत्पादों पर सरकारें स्वयं सख्त हों वरना ये भी हो सकता है कि आम जनता भी इसे समझे और वह स्वयं इसे लेकर अपने लामबंद होना आरंभ कर दे। 


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1 Comments

  1. बहुत अच्छी जानकारी है आदरणीय सर,इतनी जानकारी के बाद भी लोग तम्बाखू के प्रयोग को बंद नहीं करते हैं

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