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प्राकृतिक आपदा- खौफनाक भविष्य और बच्चों में घटती सहनशीलता


फोटोग्राफ मुन्ना पठान, खंडवा, मप्र 

प्राकृतिक आपदाओं का स्वरूप दिनोंदिन भयावह होता ही जा रहा है, पर्यावरण पर समग्र वैश्विक चिंतन चल रहा है लेकिन हालातों में फिर भी सुधार नहीं आ रहा है। वैश्विक विषयां पर सुधार को लेकर समस्त विश्व को एकाग्र होकर और समग्र होकर कार्य करना होगा। पर्यावरण के संकट से न केवल प्रकृति पर संकट गहरा रहे हैं वरन मानव जाति के लिए भी भविष्य दुष्कर और दर्दनाक होने की ओर अग्रसर हो रहा है।

सहनशीलता कम होती जा रही है

मौजूदा हालात में बात करें तो संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने 24 मई 2023 को जारी एक रिपोर्ट में गहरी चिंता जताई है कि पूर्वी एशिया और प्रशान्त क्षेत्र के बच्चे, अपने दादा-दादी की तुलना में, छह गुना अधिक जलवायु सम्बन्धित खतरों का सामना कर रहे हैं जिससे उनकी सहनशीलता कम होती जा रही है और असमानताएँ बढ़ रही हैं। सोचिएगा कितनी महत्वपूर्ण और गहन बात है कि दादा-दादी से पोते-पोतियों तक आते आते हालात इतने अधिक खराब हो गए हैं कि छह गुना अधिक खतरे बढ गए हैं इसमें जो सबसे चिंतन की बात है वह यह कि सहनशीलता कम हो रही है और असमानाएं बढ रही हैं...।

सहनशीलता घटना चिंता का विषय

इस दौर में जबकि सबसे अधिक गहन और मंथन की आवश्यकता है, इस दौर में जबकि सबसे अधिक उस पीढी को जागरुक होने और कार्य करने को तैयार की आवश्यकता है उस दौर में उस पीढी की सहनशीलता घटना चिंता का विषय है। ऐसे में उस को कैसे सुधारा जाएगा जिससे हमें सभी भयभीत भी हैं और अंदर से बेहद खामोश भी। 

आखिर कौन सी सुबह और कौन सा परिवर्तन आएगा और कब...। आखिरकार हालात बदलने की ओर कार्य करने में जुटे वैश्विक संगठनों के सामने यह रिपोर्ट गहरी चिंता खडी करती है। पूर्वी एशिया और प्रशान्त क्षेत्र में यह हालात हैं।

यहां हम यदि आंकडों की बात करें तो यूनीसेफ़ की नवीनतम क्षेत्रीय रिपोर्ट ’ओवर द टिपिंग प्वाइंट’ के अनुसार पिछले 50 वर्षों में, पूर्वी एशिया और प्रशान्त क्षेत्र में बाढ़ में 11 गुना वृद्धि देखी गई है, तूफ़ान 4 गुना बढ़े हैं, सूखे में 2.4 गुना की वृद्धि और भूस्खलन में 5 गुना बढ़ोत्तरी देखी गई है। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि बाढ, तूफान, सूखा और भूस्खलन जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं इनसे होने वाले नुकसान और इनकी पुनरावृत्ति ने कहीं न कहीं उस आने वाली पीढी उन बच्चों में सहनशीलता को तोडा है, कमजोर किया है। 

भविष्य के गर्भ में ही छिपा है

यदि इनके कारणों पर बात करें तो वह बहुत हैं लेकिन यहां हम इस महत्वपूर्ण रिपोर्ट के मूल को लेकर चिंतित हैं और सवाल उठते हैं कि क्या हालात सुधरेंगे, कब तक सुधरेंगे और हालातों के सुधरने की गति क्या होगी ? साथ ही चिंतन के बीच एक भय यह भी सुनाई पडता है कि यदि हालात नहीं सुधरे और यह और अधिक खराब हो गए तब क्या होगा, क्या उन बच्चों का रुख, व्यवहार, बर्ताव, विचार एक स्याह भविष्य की ओर अग्रसर होते नजर आएंगे ?  बहरहाल यह गहरी चिंता को जन्म तो देता है क्योंकि सुधार की शुरुआत तभी हो सकती है जब आपका मन प्रबल हो, आप संकट को समझने और पढने की ताकत अपने भीतर रखते हों लेकिन यदि आप आत्म नियंत्रण खोने की ओर अग्रसर हो रहे हैं तब सुधार की गति और लक्ष्य कैसे तय होंगे यह तो भविष्य के गर्भ में ही छिपा है। 

नीतियों पर गंभीर चिंतन आवश्यक

यहां इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तापमान और समुद्री स्तर में वृद्धि और चरम मौसम की तूफ़ान, भयंकर बाढ़, भूस्खलन और सूखे जैसी घटनाओं के कारण, लाखों बच्चे जोखिम में हैं, बहुत से बच्चे व उनके परिवार विस्थापित हो गए हैं और स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, पानी एवं साफ़-सफ़ाई से दूर वो जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सोचिएगा तो रुह कांप जाएगी कि यह हालात हमारे सामने इसी दौर में सामने हैं और सुधार की गति और नीतियों पर गंभीर चिंतन आवश्यक है क्योंकि संकट पर यदि समग्र नहीं हुए तो वह पूरे विश्व को अपनी गिरफ्त में ले लेगा।

यहां पर यह उल्लेखित किया गया है इसे भी हमें पढना, समझना और मनन करना चाहिए ताकि हमें संकट और भविष्य की मौजूदा दिशा का अंदाजा हो सके। यूएन समाचार में प्रकाशित इस खबर में पूर्वी एशिया और प्रशान्त स्थित यूनीसेफ़ कार्यालय की क्षेत्रीय निदेशक डेबोरा कॉमिनी ने बताया कि “पूर्वी एशिया और प्रशान्त क्षेत्र में बच्चों के लिए स्थिति बेहद ख़तरनाक है। जलवायु संकट से उनके जीवन को जोखिम है, और वे अपने बचपन और जीवित रहने व ख़ुशहाल जीवन जीने के अधिकार से वंचित हो गए हैं। 

यह चिंता की समय है और चिंता वैश्विक है इसलिए हमें भी उसे समझना, सीखना और मनन करना चाहिए क्योंकि पर्यावरण का संकट तत्काल सुधार की एक ठोस और सुव्यवस्थित ईमानदार प्लानिंग चाहता है जिसके अमल में केवल सरकारों का नहीं बल्कि आम नागरिकों की भी सहभागिता अनिवार्य है। 

जलवायु जोखिम सूचकांक 

आखिर में यह भी देख लें कि हालात कैसे हैं और कितने खौफनाक हैं...शायद हम समझ सकें और गहन होकर एक लक्ष्य की ओर समग्र अग्रसर हो सकें। बच्चों के जलवायु जोखिम सूचकांक  पर आधारित इस नवीनतम विश्लेषण के अनुसार, पूर्वी एशिया और प्रशान्त क्षेत्र में, 21 करोड़ से अधिक बच्चे, चक्रवातों के अत्यधिक जोखिम में हैं। 14 करोड़ बच्चे पानी की अत्यधिक कमी से पीड़ित हैं। 12 करोड़ बच्चे, तटीय बाढ़ के अत्यधिक ख़तरे में रहते हैं और 46 करोड़ बच्चे प्रदूषित वायु में जीने को मजबूर हैं। 


फोटोग्राफ बंशीलाल परमार, सुवासरा, मप्र

सोचिए कि कल कैसा होगा, होगा या नहीं होगा...? हमें बेहतर की ओर अग्रसर होने के लिए अपडेट रहना होगा और सुधार के लिए बिना शर्त कार्य में जुटना होगा...तभी यह हालात बदले जा सकेंगे। बात का मूल यदि समझा जाए तो जब मूलभूत सुविधाओं में गहरी कमी आ रही है, सामान्य जीवन भी चुनौती है, प्रतिस्पर्धा बढती जा रही है ऐसे में किस तरह उन बच्चों के सहनशील बने रहने की उम्मीद की जा सकती है, हालांकि सुधार पर कार्य पहला फोकस होना चाहिए लेकिन हालात सुधारने के लिए मन को प्रबल और और शरीर को सशक्त होना जरुरी है। 


संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति दर्शन, 
राष्ट्रीय मासिक पत्रिका 

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