मंथन कीजिएगा कि हम मौजूदा किस समय में हैं और बीता समय कैसा था, बहुत अंतर है दोनों में, साथ ही यह भी चिंतन कीजिएगा कि यह विश्व पर्यावरण दिवस का जो दिन है क्या वह अब भी उचित है या इस तिथि में बदलाव होना चाहिए।
मौसम चक्र बदल रहा है
मैं केवल इसलिए ऐसा सोचता हूं क्योंकि इस दिन हजारों लाखों पौधे रोपे जाते हैं और तापमान भी इसी समय पर बढ़ता है, पौधे रोपे जाने चाहिए लेकिन समय और परिस्थितियां अनुकूल हैं या नहीं यह भी तो देखा जाना चाहिए, हम हर वर्ष लाखों पौधे रोपते हैं लेकिन क्या यह भी बारीकी से देखा और परखा गया कि उनमें से कितने पौधे धरा हैं, वृक्ष बनने की ओर अग्रसर हैं और कितने हैं जो गर्मी की भेंट चढ़कर झुलस गए। यदि मौसम चक्र बदल रहा है और हमने अपनी दिनचर्या को उस तपिश के अनुसार ढाल लिया है तो यह एक दिन आखिर क्यों उसी तरह से और उसी ढर्रे में मनाया जा रहा है, संभव यह भी तो हो सकता है कि इस तिथि को बदलकर मौसम की उन अनुकूल परिस्थितियों के आसपास ले जाया जाए ताकि अधिक से अधिक बीज और पौधे समय पर बारिश और रखरखाव को पाकर अंकुरित हो सकें।
कितने पौधे संरक्षित हो पाते हैं
इस तरह असंख्य पौधे रोपकर हम बेशक यह महसूस कर लें कि हमने एक महत्वपूर्ण कार्य कर लिया है, लेकिन सोचिएगा कि उन पौधों में से कितने पौधे बारिश के आने तक धरा पर इस तपिश को सह पाते हैं, कितने पौधों को हम ध्यान रख पाते हैं, कितने पौधे संरक्षित हो पाते हैं। ऐसे अंकुरण जरुरी हैं लेकिन दिन और परिस्थितियों पर भी बात करनी चाहिए क्योंकि यह कोई आंखें मूंद लेने और सच को झुठला देने जैसा नहीं है क्योंकि वह तो हम सालों से करते ही आ रहे हैं, लेकिन चहिए एक दिन पूरी निष्ठा से आगे आते हैं तो कुछ विचार इस दिशा में भी कीजिएगा, संभव है मेरी बात से सभी सहमत न हों लेकिन अपने विचार रखिएगा क्योंकि कुछ नया विचार सामने आएगा...।
अनुकूल परिस्थितियां
धरती और प्रकृति सभी की है और सभी उसे संरक्षित करेंगे तभी हम उसे श्रेष्ठ बनने में मदद कर पाएंगे। सीधे अर्थों में कहना यही है कि सालों पुराने इस दिवस को इसी दिन क्यों मनाया जाए और क्या इस तिथि को अनुकूल परिस्थितियां वाले समय की ओर ले जाना चाहिए सोचिएगा ?
पौधे रोप सकते हैं
हमें समझना होगा कि जब सहज परिस्थितियों में हम प्रकृति को बेहतर बना सकते हैं, पौधे रोप सकते हैं, उन्हें वृक्ष बना सकते हैं तो इतनी विपरीत और झुलसती हुई परिस्थितियों में हम क्यों इसे जरुरी मानते हैं...। बेहतर तो होगा हम अपनी आदत बदल लें और हमें हरेक अनुकूल दिन पर्यावरण दिवस की तरह ही श्रेष्ठ महसूस हो...और हम इस एक दिन कर्म को हरेक दिन में अधिक आसानी से कर पाएंगे।
2 Comments
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(६-०६-२०२२ ) को
'समय, तपिश और यह दिवस'(चर्चा अंक- ४४५३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हर दिन बन जाए पर्यावरण दिवस, तब खिल जाएगी यह धरा हुलस
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