हमारे समाज को समझना होगा

यह तस्वीर मौजूदा दौर की सबसे खरी अभिव्यक्ति है, हममें से हरेक इसी तरह तो  जी रहा है...। हरेक अंदर से गहरे मंथन में हैं, वृक्ष पर बिना पत्तों की शाखें हैं, पक्षियों के समाज में हमसे जुदा कुछ होता है, वे साक्षी होते हैं और बदलावों को आत्मसात भी करते हैं, लेकिन धैर्य नहीं खोते... शाख और वृक्ष नहीं छोड़ते, अकेले नहीं उड़ते, एक दूसरे के प्रति प्रतिबद्ध... ओह यह सब हमें, हमारे समाज को समझना होगा। 

पक्षी शांत रहते हैं 

कितना अंतर है दो जीवात्माओं में...हम इंसान होकर बेसब्र हो उठते हैं और पक्षी शांत रहते हैं जबकि दोनों उसी प्रकृति में जीते हैं। 

ऐसे भी परिंदे है 

वे अब तक मौसम बदलने में भरोसा रखते हैं और हम कहीं न कहीं अंदर से हार रहे. हैं, बेजान हो रहे हैं...सोचिएगा कि सूखी शाखें कितनी भयभीत करती होंगी, बावजूद इसके कोई शिकायत नहीं। आपने देखा होगा कि ऐसे भी परिंदे है जो सूखे वृक्षों पर ही घौंसला बनाते हैं, नवजीवन को सृजित करते हैं, वे मौसम के बदलने की राह देखते हैं... हरियाली को देख उस सूखे वृक्ष का त्याग नहीं करते बल्कि उसे हरा होने का हौंसला देते हैं...। समझिए तो जीवन है न समझे तो सूखने वाले एक दिन सूख जाएंगे और जिन्हें हरा होना है वह उम्मीद को जीवित रखते हैं...।


संदीप कुमार शर्मा,
संपादक, प्रकृति दर्शन, राष्ट्रीय मासिक पत्रिका