किसी ने कितना खूबसूरत कहा है कि आप अपनी राह खुद तय करते हैं फिर चाहे उस पर कालीन हो या नुकीले पत्थर...। हमने कठिन पथ चुना, हमने चुना प्रकृति को, उसके दर्द के चीत्कार को सुना, महसूस किया। धरा के कंठ को सूखते देख हमें भी लगा कि हमारा कंठ भी सूखने को है...कितना सुखद सा अहसास है कि राह यदि आप मुश्किल चुनें और उस पर चलते हुए आप हमेशा मुस्कुराएं तब यकीन मानिये कि आपकी राह सही थी।
मुस्कुराहट से याद आया कि प्रकृति पर चलने की यह राह चाहे वैचारिक हो, जमीनी हो या फिर महसूस करने वाली हो....यह हम दोनों की राह है। हम दोनों इस पर बहुत जिम्मेदारी चल रहे हैं। कोई पौधा जब रोपा जाता है तब उसे बहुत से संघर्षो के साथ अपना जीवन आरंभ करना होता है, हम सब भी पौधे ही हैं, किसी के हिस्से किसी घनेरे वृक्ष की छांव है, किसी के हिस्से जमीनी नमी, किसी के हिस्से सुरक्षा तो किसी के हिस्से सख्त और झुलसाने वाली धूप...।
हम जब पौधे रोपते हैं तब केवल छांव या पानी ही जरुरी नहीं होता बल्कि धूप भी बहुत जरुरी है, यकीन मानों की धूप हमेशा जलाती नहीं है, यही आप यदि जीवन दर्शन पर समझो तो धूप हमें विपरीत हालात में जीने की ताकत देती है, बेशक हमारा शरीर झुलसता है लेकिन मजबूत भी होता है।
यह राह, यह प्रकृति संरक्षण पर गहन हो जाने की हमारी राह...सच बहुत कुछ सिखा रही है, सच प्रकृति के संघर्ष से हम सीख रहे हैं कि जिंदगी भी तो इसी तरह ही चलती है...इन्हीं नियमों पर जी जाती है....। खुश हूं कि हम दो इस महासमर में बहुत गहरे तक साथ हैं...देखो धरा हरी है और उम्मीद का सूरज भी कुछ अधिक तेज चमक रहा है...।
19 Comments
पौधों का संघर्ष देख रहा हूँ। पिछले माह परिसर में २५०० बड़े पेड़ लगाये हैं।
ReplyDeleteजी बहुत महत्वपूर्ण समय है यह समझने का कि अब हममें से हरेक को यह जिम्मेदारी के तौर पर स्वीकार करना चाहिए कि प्रकृति में हमारी भी भूमिका आवश्यक है। आभार आपका।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(०४-०८-२०२१) को
'कैसे बचे यहाँ गौरय्या!'(चर्चा अंक-४१४६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी बहुत बहुत आभार आपका अनीता जी। मेरे लेखन को सम्मान देने के लिए।
Delete
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 4 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जी बहुत बहुत आभार आपका पम्मी जी। मेरे लेखन को सम्मान देने के लिए।
Deleteआपका लेख बहुत अच्छा है शर्मा जी। बहुत कुछ कहने का मन है लेकिन अभी बस इतना ही।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका जितेंद्र माथुर जी...।
ReplyDeleteप्रकृति से प्रेम का सुंदर भाव,ऊपर से एक स्वस्थ संबल,आप अपने कर्तव्य पथ पर बहुत आगे तक जाएंगे। हार्दिक शुभकामनाएं आपको मेरी।
ReplyDeleteबहुत आभार आपका...। जिज्ञासा जी आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया बेहतर होने की जिम्मेदारी तय करती है।
Deleteउम्मीद का सूरज यूँ ही तेज बिखेरता रहे ।
ReplyDeleteबहुत आभार आपका...।
Deleteबहुत ही लेख लिखा है आपने आदरनीय । बहुत बहुत बधाई !!
ReplyDeleteबहुत आभार आपका...।
Deleteबेहद खूबसूरत लेख
ReplyDeleteबहुत आभार आपका...।
Deleteइतना सूक्ष्म तादात्म्य और अभिव्यक्ति भी । गहन ।
ReplyDeleteआपका अथक सार्थक प्रयास प्रेरक और सराहनीय है सर
ReplyDeleteप्रणाम
सादर।
बहुत ही सुंदर उद्गार सटीक ।
ReplyDeleteकठोर धरातल,जीवन की कठिनाइयां हमें संघर्ष करना सीखाती है सब कुछ सहज नहीं होता सभी को।
अप्रतिम लेख।