अमूमन आप कैमरा हाथ में पकड़ते हो और फोटोग्राफी की फीलिंग आने लगती है, आनी भी चाहिए लेकिन एक अच्छी तस्वीर इंतज़ार के बाद मिलती है...आपके पास कैमरा भी है नज़र भी है बावजूद इसके वो एक अच्छी तस्वीर की भूख नहीं मिटती...। अच्छी तस्वीर के मायने हैं जिसके क्लिक होते ही अहसास हो कि मन खुशी से भर गया और कैमरा, मन, आंखें और नज़र का एक तारतम्य बना और एक साथ क्लिक पर फोकस हुआ...बस फिर क्या था... एक तस्वीर आपके सामने थी...। कहा जाता है फोटोग्राफी के लिए कैमरा महत्वपूर्ण नहीं है, नज़र खास होना चाहिए... देखने का एंगल (नजरिया) जरूरी है...। मैं नेचर फोटोग्राफी करता हूँ मुझे अधिक धैर्य तब रखना पड़ता है जब पक्षियों को बतियाते देखता हूँ और उन्हें उसी अंदाज में तस्वीर बनाना चाहता हूं... खैर फोटोग्राफी यदि आपका शौक है तब यकीन मानिए कि आप प्रकृति के करीब स्वतः ही हो जाते हैं... फूल बतियाते ही नहीं बीच में खिलखिलाते भी हैं... पक्षी भी कई खूबसूरत अंद़ाज दिखाते हैं...आपके मन पर धैर्य जरूरी है क्योंकि एक अच्छी तस्वीर एक अच्छी जिंदगी जीने और अच्छे सपने के पूरा होने का ही सुख देती है...। आईये मन की नज़र पर रखें नज़र कि काश कोई ख्वाब तस्वीर हो जाए...।
4 Comments
मैं भी कोई पेशेवर छायाकार नहीं लेकिन तसवीरें खींचने का मेरा शौक़ बहुत पुराना है। तसवीर व्यक्ति या वस्तु की नहीं, उस क्षण की होती है जो उसमें स्थिर हो जाता है। आपकी बात सही है कि इस काम के लिए नज़र (और नज़रिया) ही सबसे ज़्यादा ज़रूरी हैं। यह भी सच है कि जिसे यह शौक़ है, वह अपने आप ही कुदरत के नज़दीक हो जाता है। और यह भी सच कहा है आपने कि मन में धैर्य बहुत आवश्यक है क्योंकि अच्छी तसवीर अच्छी ज़िंदगी जीने और अच्छे सपने के पूरा होने जैसा ही सुख देती है। यह जीवन-दर्शन तो अनमोल है और जो इसे समझ ले, उसका श्रेष्ठ छायाकार होना (या बन जाना) सुनिश्चित है।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका जितेंद्र जी। छायाकार की मन की दुनिया बहुत अलग होती है उसमें वह अकेला ही अपने नजरिये के साथ विचरण करता रहता है। जानकर अच्छा लगा आप भी फोटोग्राफी का शौक रखते हैं...आभार आपका।
Deleteएक अच्छे और नए विषय पर आपका यह लेख रोचक तथा बढ़िया लगा,आपकी खींची अगली तस्वीर हम देखते रह जाएं, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ जिज्ञासा सिंह...
ReplyDeleteजी बहुत आभारी हूं आपका जिज्ञासा जी...प्लान कर रहा हूं कि एक ब्लॉग खूबसूरत और बोलती हुई तस्वीरों का आरंभ कर दूं...प्रकृति मेरा चिंतन, शौक, मेरी रगों में प्रवाहित होने वाली प्राणवायु है...।
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