Ad code

बहुत सा अनकहा खोजा नहीं जा सकेगा उम्रभर



 कैसा दौर है कि अचानक आई उम्र की इस ठिठकन में कोई भी अपना करीब नहीं था, सोचिएगा कि कितना कुछ अनकहा सा रह गया हो जिसे वह जो इस दुनिया में अब नहीं हैं बताना चाहते होंगे और उसे उस महत्वपूर्ण समय में सुनने वाला कोई नहीं होगा। ये कैसा अकेलापन और ये कैसा खौफनाक अंत। व्यक्ति पूरी उम्र को रेशे-रेशे से बुनता है, रिश्तों को उम्मीद से सींचता है, उम्मीद टांकता है लेकिन ऐसी एक ठिठकन सबकुछ मिटा गई। सोचिएगा कि उस आखिरी वक्त कितनों के गले रुंध गए होंगे, आवाज गले तक आकर ठहर जाती होगी, नजरें बार-बार अस्पताल के दरवाजे पर जाती होंगी, मन भागने को करता होगा, मन ये भी करता होगा कि लिख ही दूं कि क्या रह गया, कौन सी जिम्मेदारी कहां अटकी रह गई, कौन सा सच अधूरा सा ही बता पाया, कौन सी रणनीति बताने का समय आने वाला था लेकिन अब ये हाल...। घर में कहां क्या रखा है, किसे क्या दे रखा है किससे क्या लेना है, जीवन के लिए बुनी गई सुविधाओं का कौन सिरा जरुरी था जो परिवार के जिम्मेदार व्यक्ति में स्थानांतरित होना था लेकिन नहीं हो पाया, कौन सा सिरा छूट गया इस तरह और टूट गया। जमीन के पेपर, गांव का घर, करीबी सा दोस्त, बच्चों का जीवन, उनकी तरक्की, पत्नी को दिया गया भरोसा कि बुजुर्ग होने पर साथ घूमेंगे हाथों में हाथ डालकर कहीं छिटक गया, चीख और खीझ कई बार निकली होगी, बिस्तर पर चादर को मुट्ठी से कसकर पकडे़ जाने पर उभरी हुई सिकुड़न इस बात की गवाह होगी कि दर्द कितनी बार रह रहकर उठा होगा। कौन जाने कौन सा दर्द वे साथ ले गए और कौन सी खुशी जो वे बांटने ही वाले थे परिवार के साथ। आंखों की कोरों में मोटा सा नमक भी साथ ले गए जो जमा होगा इतने दिनों के आंसुओं के लगातार बहने से...। ओह कौन समझा होगा उस दर्द और कितनी ही ऐसी अनकही बातें हमेशा के लिए खो गईं जिन्हें ताउम्र खोजा नहीं जा सकेगा। 

परिवार की बात करें तो वे अलग तरह से रोज टूटे हैं, उनकी चटखन भी दर्द से भरी है, देखने की बेबसी, मिलने की बेबसी, उनके दर्द में उन्हें ढांढस न बंधा पाने की बेबसी अंदर तक गहरे जख्म कर गई है, इसने रिसता रहेगा दर्द सालों तक, टीस भी उभरेंगी रह रहकर। ओह...ये दौर क्या दे गया और क्या ले गया...। मन खिन्न भी है और मन टूटा भी हुआ है, कहीं कोई हिस्सा साबुत है और कह रहा है कि काश उस भागती जिंदगी में एक बार साथ बैठ गए होते बाबूजी के...मां के, बहन के, पत्नी के, पति के, बच्चे के...ओह रिश्तों का दामन आंसुओं से भीगा है, मन में गहरी सीलन है....और वहां हवा भी नहीं जा सकती क्योंकि उसमें भी जहर घुला है....।


Post a Comment

11 Comments

  1. जी बहुत आभार आपका मीना जी।

    ReplyDelete
  2. दर्दभरी सच्चाई बयान की है आपने। हम सिर्फ़ इतना ही कर सकते हैं कि अनकहा कम-से-कम रहे। कुछ सुकून दे सकने वाली बातें कह दी जाएं। कुछ दर्द बांट लिए जाएं। कुछ ख़ुशी बिखेर दी जाए। जो ज़ुबां मिली है, उसका और कोई बेहतर इस्तेमाल न क पाएं तो इतना तो करें।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मन कही न कही बहुत कुछ कहना चाहता है...हम उनकी सोचें जो कहना चाहते थे लेकिन वे इस दुनिया से चले गए...ओह कितना कुछ साथ ले गए...। आभार आपका जितेंद्र जी

      Delete
  3. दर्दभरी प्रविष्टि.

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका आदरणीय ओंकार जी।

      Delete
  4. आज के दौर को लेकर जो कुछ भी दर्द है मन में,सब आपने बिलकुल सपष्ट और सही शब्दों में लिख दिया..यही तो हर किसी के मन में चल रहा है,जो बड़ा ही भयानक और कष्टकारी है।

    ReplyDelete
  5. जी बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी...हमारा, आपका और हम सभी का मन एक जैसे दर्द से गुजर रहा है, इस दर्द ने बहुत कुछ कह रखा है...कुछ हम लिख पा रहे हैं कुछ छूट जा रहा है....।

    ReplyDelete
  6. जीवन की सच्चाई व्यक्त करती बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका ज्योति जी।

      Delete
  7. ओह ! दर्द भरी सच्चाई अचानक आई बिमारियाँ प्राण तो लेती थी पहले भी पर फिर भी बहुत को कुछ कहने का मौका मिलता था पर ये कैसी मौत है कि धीरे धीरे जकड़ती है कहने का समय भी देती है पर कोई सुनने वाला पास नहीं होता...
    दारुण!

    ReplyDelete
  8. जी ये दौर बहुत दर्द दे गया है हमारी इस खूबसूरत दुनिया को। आभार आपका।

    ReplyDelete

Comments