हम तो जी भारतीय हैं और हमें तो बातें करना वैसे भी बहुत पसंद है लेकिन हम दायरे भी जानते हैं कि कौन सी बात कब की जानी चाहिए और कब सुनी जानी चाहिए, हर बात हर समय बोलने की भी नहीं होती और हम बात हर समय सुनने की भी नही होती, कब, क्या और कितना बोलना जाना चाहिए ये बहुत महत्वपूर्ण है, आपको कौन सुनना चाहता है, कितना और आपसे क्या सुनने की उम्मीद रखता है ये सब बातें हमें बोलने से पहले बहुत सोचनी चाहिए। मान लीजिए कि कोई उलझनों में है और अपने ही खोया हुआ है तब आप उस उसे कोई भी वकतव्य नहीं सुना सकते, उसकी मनोदशा के अनुसार ही आपको आचरण करना होगा, उसे समझना होगा और उसे समझाना होगा। आप बहुत अच्छे वक्ता भी हैं तब भी आपको हर बार ये सोचना चाहिए कि मैं जिन्हें अपनी बातें सुनना चाहता हूं वे किस मनोदशा के लोग हैं उनकी आवश्यकता क्या है। इस दौर में केवल बोलने वालों को ही पचाया नहीं जा सकता क्योंकि बोलने पर कोई समाधान हो, कोई सलाह हो, कोई ऐसी बात हो जो हमें बेहतर बनाने का सबक हो। 

एक पुराने गीत की पंक्तियां भी याद आ रही हैं...

कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो, क्या कहना है, क्या सुनना है, मुझको पता है, तुमको पता है समय का ये पल...थम सा गया है...और इस पल में कोई नहीं है...बस एक मैं हूं...बस एक तुम हो....।

दोस्तों बातों पर बात करते हुए एक कथा आपको बताता हूं संभवत आप उससे जान पाएंगे कि हालात भी कितने जरुरी होते हैं ये तय करने के लिए क्या कहना चाहिए और कितना कहना चाहिए। 

यहां एक बहुत छोटी सी कथा है एक समुद्र में जहाज के मुसीबत में फंसने के कारण जान बचाने के लिए लोग स्वप्रेरणा से नौका पर सवार हो जाते हैं, उनमें पांच तरह के लोग होते हैं, एक जो लगातार चीख रहा था, उस जहाज के कप्तान को कोस रहा था, दूसरा उस कोसते हुए को सुन रहा था और बीच-बीच में हां बोलकर सिर हिला रहा था, उसे देखकर लगा जैसे उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा केवल वह उस चीखते आदमी से प्रभावित है। उसी नौका पर तीसरा व्यक्ति भी था जो बेहद डरा हुआ सहमा हुआ कभी समुद्र के पानी को देखता तो कभी हिचकोले खाती नाव को, वह व्यक्ति उस समय मन से वहां था ही नहीं इसलिए वह किसी की नहीं सुन रहा था वह केवल डरा था और अपने डर से बातें कर रहा था, बुदबुदा रहा था। चौथा व्यक्ति भी था जो नियति मानकर नाव के एक हिस्से में लेट गया, मुंह पर पंछा डालकर धूप से खुद को बचाकर लेट गया, केवल इतना ही बोला कि जो हमारे हाथ में है ही नहीं उसका क्या सोचें, जो होगा देखा जाएगा। पांचवा व्यक्ति इन सब से अलग था और वह केवल ये सोच रहा था कि इस स्थिति से बाहर कैसे निकला जाएगा और इन शेष चारों को भी कैसे इस भंवर से निकाला जाए। वह प्लानिंग में लगा था और देख रहा था पानी की लहरें कितनी उछाल ले रही हैं, हवा का रुख कैसा है, नौका में किस ओर वजन अधिक है और किस ओर कम है, वह उस सिस्टम पर चीखते आदमी को केवल देख रहा था लेकिन उसकी बातों पर कतई ध्यान नहीं दे रहा था, तभी जहाज पर से भी कप्तान की आवाज आई कि आप अपने मन को मजबूत रखना, नौका पर निकले हो, सही तरह से उसे चलना, हवा की दिशा देखना मुझे भरोसा है आप ऐसा करोगे तो सही सलामत किनारे पहुंच जाओगे। प्लानिंग करता हुआ आदमी केवल उसे देखकर अपनी प्लानिंग में लग गया और चीखता आदमी उसे प्रतिउत्त्र देने लगा कि तुमसे अपना जहाज तो संभल नहीं रहा हमें मत बताओ, जो व्यक्ति फालो कर रहा था वह दो पल के लिए उस जहाज के कप्तान से भी प्रभावित हो गया, बाद में उस चीखने वाले की ओर आ गया। अगले ही पल जहाज के कप्तान की ओर होकर बोला वे जानकार हैं, उम्र वाले हैं वे भी सही बोल रहे हैं, चीखता आदमी बोला जानकार हैं तो जहाज को अच्छे से चलाएं मुश्किलों में फंसे जहाज को दुरुस्त करने की जगह ज्ञान क्यों बांट रहे हैं, वो कप्तान हैं और हम भरोसे उसे उनके जहाज पर सवार हुए थे, अगर जहाज सही नहीं चला सकते तब हमें भी ज्ञान न दे। उस नाव पर जो लेटा था उसने मुंह निकालकर देखा और कप्तान की बात सुनी और फिर सो गया। डरा व्यक्ति हाथ उठाकर कहने लगा मैं आपके जहाज पर लौट सकता हूं क्या, कप्तान मुस्कुराकर अंदर चला गया। प्लानिंग कर रहे व्यक्ति ने उसे हाथ पकड़कर बैठाया और शांत रहने को कहा...और ये सफर चलता रहा। 

हम इस कथा को किसी भी तरह लें लेकिन ये जीवन की हकीकत है कि हम इसी तरह के हैं, विभिन्न स्वभाव और भाव के। ज्ञान कितना है और उसका उपयोग विपरीत परिस्थिति में कैसे करना है हमें नहीं पता, लेकिन हम ज्ञानी होने का दावा करते हैं, हमारा क्रोध हमें अगले ही पल पराजित कर जाता है, हम हार जाते हैं लेकिन हम शांत होकर सोचना नहीं जानते। हमारे यहां शांत होकर भय के समय अनुसरण करने वालों के साथ कुछ गिनती के लोग चिंतन करने वाले भी होते हैं जो उस भंवर से सभी को निकालने का भी सोचते हैं...। उस जहाज के कप्तान जैसे भी लोग होते हैं जिससे अपना जहाज नहीं संभल रहा लेकिन वे नौका में सफर करते लोगों को बचने के गुण समझाते हैं...। सोचिएगा इस कथा में जब परेशान व्यक्ति उस कप्तान से कहता है कि मैं आपके जहाज पर आ सकता हूं तब वह केवल मुस्कुराकर अंदर चला जाता है, यहां ये बात समझ से परे है कि डूबते जहाज का कप्तान आखिर मुस्कुरा भी कैसे सकता है। 

ये कठिन दौर है और इसमें बात कीजिए ना अपनों से। बात करने की मनाही नही है, लेकिन वह कहिए जो उसके दर्द पर मरहम लगाए, उसे राह बताईये, उसकी राह आसान हो वह बातें उसे बताईये। कुछ भी अकड़म-बकड़म कौन सुनने का समय किसी के पास नहीं है। इस दौर में लेकिन वे सुनना क्या चाहते हैं आपको पता तो हो, वे राग विराग में जी रहे हैं और आप उन्हें राग मल्हार सुना रहे हो। मत कीजिए, आप नहीं जानते तो खामोश रहिये और लोगों को अपनी ताकत खुद बनने दीजिए। ये समय पीठ पर हाथ रखकर ताकत बंधाने का है, जीत के प्रति भरोसा जगाने का है, उम्मीद बंधाने का है किसी को जीवन का हौंसला देने का है। हम रोज कम से कम पांच लोगों से बात करें और उनसे उनके परिवार की कुशलक्षेम पूछें कोई कारोबारी बात नहीं, कोई राजनीति की बात नहीं, कोई बेकार की बहस नहीं केवल परिवार की पूछें, आप जो जानते हैं उन्हें बताएं वे जो जानते हैं आप सुन लीजिए...देखिये समाज बहुत खूबसूरत है और इसे और बेहतर हम बना सकते हैं बस बोलने सलीका, समझ और समय को समझना सीख जाईये। देश में इस समय बहुत से ग्रुप हैं जो सेवा में जुटे हैं, पीठ थपथपा रहे हैं, हमारे यहां आदमी कमजोर नहीं है वह खुद जीतना जानता है बस आप उसका हौंसला बेहतर बनाईये। बात कीजिए ना बात करने से दर्द बंटता है, मन मजबूत होता है लेकिन बातें भी तो वह हो जनाब जिनसे अपनेपन की महक आए।