सौंदर्य की अपनी आयु है
यकीन कीजिए प्रेम प्रतिबिंब होता है और मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ क्योंकि आप देखिएगा किसी सुर्ख गुलाब को देखने पर ही हमारे अंदर भाव अनुभूति बनकर संचारित होते हैं, अनुराग जागता है, नज़रिया बदलता है और हम प्रेम का स्पर्श पाने लगते हैं। हमें अक्सर प्रेम का आकर्षण पसंद होता है, हम उसे बांध लेना चाहते हैं लेकिन प्रेम सौंदर्य का चेहरा है और सौंदर्य की अपनी आयु है उसके पश्चात वह पतझड़ सा झड़ने लगता है, सौंदर्य को पा लेने और उसे अधिग्रहित कर लेने के भाव हमें असहज बनाते हैं।
केवल महसूस कीजिये
आपने चंद्रमा पानी में देखा होगा, बस वही प्रेम है। कारण है चंद्रमा का अक्स उस पानी की सतह पर जितनी देर स्थिर है प्रेम का वही क्षणिक भाव हमारे लिए उपलब्ध है। प्रेम की यह क्षणिक अनुभूति ही आपको सार्थक बना जाती है। सौंदर्य पर एक बात हमेशा कहता हूँ कि उसे आप केवल महसूस कीजिये उसे छूने का प्रयास न करें... वरना या तो आप खत्म होंगे या वह सौंदर्य। प्रेम और उसका प्रतिबिंब तभी तक है जब तक आप उसे महसूस कर रहे हैं। आपने पक्षियों को देखा होगा वह प्रकृति से अनूठा प्रेम करते हैं, पूरी उम्र अनेक वृक्षों की शाखाओं पर बैठते और उड़ते हैं, हर वृक्ष की कुशलक्षेम पूछते हैं, किसी एक पर ठहरते नहीं हैं।
प्रेम का शरीर नहीं होता
अगर हम कहें कि प्रेम में सौंदर्य ही सर्वश्रेष्ठ होता है तो फिर झुर्रियों वाली उम्रदराज मां क्यों जिंदगी का अहम हिस्सा होती है, प्रेम में यदि चेहरा ही सबकुछ होता है तो साथ जीती पत्नी उम्र बढ़ने पर हमारे और करीब कैसे होती है ? प्रेम का शरीर नहीं होता, वह वैसे ही नज़र आएगा जैसा हम चाहेंगे...। प्रेम की अनुभूति को हम एक अध्याय मानकर अपने जीवन की डायरी का एक पन्ना बना लेते हैं, पूरी उम्र उसे पढ़कर आनंदित होते हैं।
जब जब हम प्रेम को समझ पाने में नाकाम होते हैं हम अंदर से गुस्सैल और स्वार्थी हो उठते हैं, हम असल नहीं देखते, उस अनुराग को हर हाल में हासिल कर लेना चाहते हैं, यह अवस्था हमें अपने से कोसों दूर ले जाती है।
प्रतिबिंब प्रेम का चेहरा है जिसे आप बेहद करीब से देख सकते हैं। प्रेम को समझना कोई दर्शन नहीं है, एक सीधी सी गढ़ी हुई इबारत है... पढ़ जाईये यह आपके अंदर ताउम्र महकता रहेगा।।
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