राष्ट्रीय मासिक पत्रिका ‘प्रकृति दर्शन’ नवंबर का अंक- प्रकृति और संस्कृति विषय पर केंद्रित है, इसके लिए आप सभी सुधी लेखक साथियों से आलेख और रचनाएं आमंत्रित हैं। रचनाएं आप हमें 16 अक्टूबर तक ईमेल के माध्यम से प्रेषित कर सकते हैं। दोस्तों महापर्व आने को है ऐसे में उल्लास, उत्साह के बीच कुछ गहन और बेहद जरुरी मंथन हो जाए ताकि सदियों तक उत्सव का उल्लास भी कायम रहे और प्रकृति भी बेहतर रह सके...क्योंकि यदि हम नहीं चेते तो यकीन मानियेगा कि संकट भविष्य पर है।
विषय विस्तार- प्रकृति, प्रवृत्ति और संस्कृति तीनों बेहद समग्र हैं और प्रकृति और प्रवृत्ति से ही संस्कृति का निर्माण होता है। हमें आकलन करना चाहिए कि संस्कृति ने प्रकृति को बेहतर बनाने के लिए क्या किया है और प्रकृति हमारी संस्कृति में किस तरह समाहित है, हमारी संस्कृति के रंग कितने गहरे हैं जो प्रकृति से हासिल हुए हैं, क्या संरक्षण के बीच प्रकृति बाधित भी हो रही है ? उत्सव, उल्लास के बीच क्या प्रकृति पर भी सोचने का समय हमें निकालना चाहिए...? मौजूदा हालात में जब प्राकृतिक आपदाएं हमारे लिए चुनौती बन रही हैं तब इस विषय पर मंथन बेहद आवश्यक हो जाता है। दीपावली महापर्व पर यह विशेष अंक रहेगा...आलेख में ध्यान रखियेगा कि कम शब्दों में अधिक बात समाहित हो सके। आलेख के आखिर में संक्षिप्त परिचय और आलेख या रचना मौलिक और अप्रकाशित होने की सूचना भी अवश्य लिखियेगा।
आलेख 16 अक्टूबर शाम पांच बजे तक मेल कर सकते हैं। आलेख प्रकाशन के लिए स्वीकृत होने की ही सूचना दी जाएगी।
संदीप कुमार शर्मा
प्रधान संपादक, प्रकृति दर्शन, मासिक पत्रिका
ईमेल- editorpd17@gmail.com
वेबसाइट- www.prakritidarshan.com
मोबाइल/व्हाटसऐप- 8191903651
1 Comments
बहुत आभार आपका कामिनी जी। विषय को प्रसारित करने से अच्छे आलेख मिल सकेंगे और काफी साथियों तक सूचना पहुंच सकेगी। आभार।
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