विरक्ति और वैराग्य में अंतर है। दोनों अवस्था अलग हैं लेकिन श्रेष्ठ अवस्था किसे कहेंगे... क्योंकि दोनों में ही जीवन से दूरियां हैं...। संभव है हममें दोनों को लेकर मतभेद हों या वैचारिक समानता लेकिन एक सत्य है कि जीवन की असल तलाश भी उसके खोने और उसमें खोने से ही होती है। मैं समझता हूँ विरक्ति में वैराग्य के आरंभिक अंश, मूल निहित हैं। वैराग्य खो जाने का चरम है...। खो जाने में पा जाने की आंशिक आवृत्ति भी अवरोध है और पा जाने का मौन अहसास एक राह है...श्वेत राह...। चलते जाईए आप खुद तक पहुंचेंगे आप वैराग्य को पा चुके होंगे...।
2 Comments
वैराग्य खो जाने का चरम है...-----------
ReplyDeleteबहुत सुंदर संदीप जी ! सच में वैराग्य में शायद सभी मिथ्या और मायावी आवरणों का पटाक्षेप हो चुका होता है |आसक्ति अस्थाई भाव है तो वैराग्य स्थाई अवस्था |
जी स्थायी अवस्था है वैराग्य...लेकिन पूर्णता की ओर अग्रसर होते जीवन का शास्वत सत्य
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