मैंने तुम्हारे हिस्से की छांव बचा रखी है, जिंदगी के सबसे तपे हुए दिनों में तुम अपनी छांव ले जाना। मैंने इसे सीलन से बचाने की कोशिश की, बावजूद ये कहीं कोनों पर से सील गई थी। मैंने इसे तेज धूप में बिछा दिया है सुखाने के लिए, इससे पहले कि ये अधिक गर्म होकर झुलसने लगे, तुम ले जाना अपने हिस्से की छांव।
मैं तो इसे लेकर धूप में ही बैठा रहा, मैं राह देख रहा था कि कुछ पल मिलकर साथ बैठेंगे। तुम भी भागती रहीं जिंदगी की राह पर,मैं भी उधेड़बुन सा फटता रहा, सिलता रहा।आओ देखो धूप तेज है जिंदगी उबल रही है, आओ कुछ देर छांव के तिरपाल के नीचे बैठ जाएं।
2 Comments
जीवन की असहनीय धूप में बडी राहत देती है ये छाँव। किसी नसीब वाले को ही नसीब होती है। एक गद्य जो मन की कविता है🙏🙏
ReplyDeleteजी..रेणु जी...। छांव राहत देती है लेकिन इसे सहेजना भी आसान नहीं होता...। बहुत आभार ...आपको मेरा लिखा पसंद आ रहा है...।
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