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..जहाजों का अंतिम सफर


मैं जब अलंग, भावनगर, गुजरात पहुंचा तो मुझे बताया कि यहां दुनिया भर के जहाज काटने के लिए लाए जाते हैं...बातों ही बातों में पता चला कि यहां जो भी जहाज पहुंचता है वो उसका अंतिम सफर होता है...यहां किनारे पर पहुंचाने की भी अपनी एक प्रक्रिया है...। मैं सोचता रहा दुनिया भर के समुद्रों को अपने हौंसलों से नापने वाले जहाजों का भी अंत होता है, कैप्टन के लिए ये यात्रा, ये जहाज, उसकी यादें और उसके सफर...सब याद आते होंगे...कैसे वो उसे इस किनारे ला पाता होगा जहां कि वो जानता है कि कुछ महीनों में वो शानदार जहाज पुर्जे-पुर्जे होकर कई हिस्सों में बिखर जाएगा....। जहाज का यूं किनारे लगना या यूं कहूं उम्र को जीकर आत्मसमर्पण करना इतिहास के पन्नों के पलट दिए जाने जैसा ही है...। मैं और मेरे भाई बालादत्त जी काफी देर किनारे पर टकटकी लगाए विशालकाय जहाजों को टूटता देख रहे थे, अंदर के शामियाने कहीं किसी कोने में कालिख भरी मोटी सी चेन के पास रखे हुए थे दोबारा बिकने के लिए...। उस दिन लगा जहाज हो जाना भी जिंदगी का एक खेल ही है...। दूर रेत के बीच फंसा एक जहाज भी नजर आया, एक्सपर्ट ने बताया कि ज्वार-भाटे के समय जब पानी आगे आएगा तब वो भी किनारे लग जाएगा...दूर पनीली रेत की पीठ पर सवार जहाज उस घाट पर कटते जहाजों का दर्द भलीभांति महसूस कर रहा होगा...ये सोचते हुए हम वहां से लौट आए।

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2 Comments

  1. संदीप जी, आपकी पोस्ट के मर्मांतक शब्द मन को कहीं ना नहीं विचलित से कर गए। हर यात्रा का एक अंत होता है। जहाज भी इस अंत से अछूते कैसे रह सकते हैं। एक निश्चित जगह इन जहाजों को ला उन्हें अंजाम तक पहुंचाने की प्रक्रिया मन को गहरे तक अद्वेलित करती है। भावुक कर देने वाली अभिव्यक्ति है।

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    1. ये जीवन भी एक सफर है और ये मन और विचारों का रेला भी एक सफर से होकर गुजरता है। सच जहाजों को टूटता देख हममें से भी अंदर बहुत कुछ टूटता है। आभार

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