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उन्हें समझने के लिए मन का ‘आशुतोष’ होना अनिवार्य है


काफी दिनों से सोच रहा था कि आशुतोष राना जी पर कुछ लिखा जाए, मनोयोग बना फिर बिखरा, फिर बना और बनता ही गया। आशुतोष राना जी को हम जितना समझ पाए हैं वे एक अच्छे कलाकार है, वक्ता हैं, चिंतक हैं और अच्छे दोस्त हैं, दोस्त ऐसे जिनसे सबकुछ मन का कहा जा सकता है। मुझे इसलिए ऐसा लगता है क्योंकि वे फिल्मी दुनिया के कम और हमारी आम दुनिया के अधिक नजर आते हैं क्योंकि वे सहजता को सर्वोपरि मानते हैं और सादगी को सबसे अहम। जब लिखना आरंभ कर रहा हूं तब यह भी लगा कि उनके किस छोर को पकड़ा जाए सभी बहुत गहरे समाए हैं। कहां से आरंभ करें और कहां तक पहुंचेंगे कोई छोटा छोर देखता रहा, खोजता रहा लेकिन थक हारकर लौट आया और सोचता रहा कि मैं भी अजीब हूं जो उन्हें शिराओं और छोरों पर तलाश रहा हूं। वे हैं भी बहुत ही अजीब सीधे तौर पर समझ न आने वाले, उन्हें समझने के लिए गहरा होना और गहरे होते रहना आवश्यक है। वे एक आयाम कहां हैं चिंतन से दुनिया के समक्ष अपना नजरिया रखने वाले आशुतोष फिल्मों में आकर खलनायक बन जाते हैं, एक चिंतक होकर खलनायक का अभिनय करते हैं और उसमें इतने गहरे उतर जाते हैं कि परदे पर उनके सिवाए कोई और नजर ही नहीं आता, स्मृतियों में छा जाते हैं। साक्षात्कार में हंसते हुए कहते हैं लोगों को दोस्तों से मिलता है मुझे जो दिया वो दुश्मन ने दिया...जी हां ‘दुश्मन’ उनकी फिल्म का नाम है। खलनायक का अभिनय कर फिल्मी क्षेत्र में अपने आप को स्थापित करने वाले आशुतोष साहित्य में दाखिल होते हैं और ‘रामराज्य’ लिख देते हैं...अब उनका चिंतन देख लें ‘रामराज्य’ का ये अंश यहां जरुरी लगा इसलिए साभार ले रहा हूं।
हनुमान की तरफ कनखियों से देखता हुआ रावण बोला ‘राम, मैं महादेव शिव का भक्त ही नहीं उनका दास भी हूं। मुझे मात्र महादेव ही प्रिय हैं किंतु मैं देख रहा हूं कि मेरे आराध्य महादेव तो तुम्हारे भक्त हैं और उन्हें तुम अतिप्रिय हो। मेरे निदान के लिए उन्होंने तुम्हारा चयन किया है। राम, क्योंकि महादेव अपने इस हठी, दुराग्रही और अतिप्रिय शिष्य को मृत्यु नहीं, मुक्ति प्रदान करना चाहते हैं...।
अब आप ही बताईये कितने आयामों को छूते हुए भी वे कितने सहज और सरल हैं, जब वे अपने गांव होते हैं तो उनका अपना अंदाज होता है और साहित्य के क्षेत्र में अपना अलग अंदाज। फिल्मों में अलग और चिंतन की लेखनी के दौरान अलग नजर आते हैं। उन्हें जब आप बोलते हुए पाएंगे तो लगेगा जैसा वे कहते रहें, शब्दों के साथ उच्चारण से भी गहरी मित्रता है, सभी उनके साथ नजर आते हैं। जब आप उन्हें देख रहें हों तो लगेगा कि परदे पर केवल वे ही रहें, उनकी आवाज और उनका चेहरा लगता है एक-दूसरे का आइना हैं। जब आप उन्हें पढ़ रहे होते हैं तब आप आप उन्हें अपलक पढ़ जाते हैं, सोचता हूं जब हम उन्हें अपलक पढ़ जाते हैं, सहज देख जाते हैं, धैर्य से सुन जाते हैं तब क्या वे कठिन हैं, उन्हें समझना कठिन कहां हैं, लेकिन फिर अगले ही पल सोचता हूं कि आसान भी तो नहीं है क्योंकि जो सबसे सरल है वही सबसे कठिन भी है और जो सबसे कठिन है वही सबसे सरल भी है, ये विधाता ने भी खूब रचना की है इस संसार की, पहले अपने आप का साक्षात्कार अनिवार्य कर दिया है और उसके बाद जग का साक्षात्कार अनिवार्य किया है, जग को खोजने वाला यदि अपने आप तक नहीं पहुंचता है तो वो बिना मंजिल का राही हो गया और जो अपने आप को खोज कर जग की ओर अग्रसर हुआ तब यकीन मानिये कि वो रैदासी भाव का अनूठा उदाहरण है जिसे सबकुछ समझ आना तय है, अब ये आप पर आकर बात ठहर जाती है कि आप ऐसे व्यक्तियों को कितना खोज पाते हैं और कितना उनमें आप समाहित हो पाते हैं।
आशुतोष राना जी का चेहरा बोलता है, आंखें बोलती हैं, चेहरे के हर भाव बोलते हैं, शब्द और उच्चारण की आवश्यकता तो उन्हें बहुत बाद में होती है, मेरा मानना है कि हम उन्हें सतत पढ़ना आरंभ करें क्योंकि कलाकार तो बहुत आएंगे लेकिन आशुतोष राना जी जैसे कलाकार सदियों में आते हैं, एक ही कोई होता है जो आशुतोष कहलाता है। उनकी कृति, चिंतन और लेखनी नायाब है आप उसमें खो जाएंगे, आप यदि उन्हें पढ़ रहे हैं तब यकीन मानिये कि आपको हर पल ये अहसास भी होगा कि हम कठिन से सरल का कोई पथ चुनकर उस पर अग्रसर हैं या ये भी लग सकता है कि किसी सरल से पथ या पगडंडी से हम किसी कठिन से पथ की ओर अग्रसर हैं लेकिन बिना थके और बिना हारे क्योंकि वे संपूर्ण हैं और जीतने में भरोसा रखते हैं, जीतना सिखाते हैं और जीतने को ही श्रेयस्कर मानते हैं बशर्ते उस जीत की राह आपके मन के ही कहीं आसपास से होकर निकली हो। वे अनूठे हैं क्योंकि उन्हें अपने अंदर झांककर देखना आ गया है, वे अनूठे हैं क्योंकि वे आज के दौर में भी एक आदर्श रामराज्य को देखते और गढ़ते हैं, वे अनूठे हैं क्योंकि वे रिश्तों को मान देते हैं, वे अनूठे हैं क्योंकि वे अपने गुरू के हर पग पर अपना मस्तक टेकते हैं, वे अनूठे हैं क्योंकि खलनायक होकर भी उसे नायक की तरह जीते हैं, वे अनूठे हैं क्योंकि वे खरा कहते हैं और खरा पसंद करते हैं, आप उनसे सहजता पा सकते हैं, लेकिन आपको हर पल वे अपने आपमें कठिन नजर आएंगे लेकिन आप उन्हें पढ़ेंगे तब आपको वे एक सहज सा अध्याय बनकर समझ में आ जाएंगे...ओह, सोचता हूं लिखूंगा एक समय पर उन्हें और पढ़कर, लेकिन सोचता हूं क्या उन्हें पढ़ने की कोई थाह है, कोई आसान लिपि या शब्द कोष, समझने की कोई सीमा क्योंकि वे आशुतोष और उन्हें समझने के लिए आपके मन का आशुतोष हो जाना अनिवार्य है...।


(फोटोग्राफ गूगल से साभार)

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4 Comments

  1. उन्हें समझने के लिए आपके मन का आशुतोष हो जाना अनिवार्य है...।
    सहमत हूँ आपकी बात से .. जहाँ आशुतोष जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं वहीं उच्चकोटि के कलाकार भी, बहुत ही बेहतरीन आलेख ..

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    1. जी वे अभिनय और ज्ञान में अनूठे हैं, उनकी हिंदी और शब्दों का उच्चारण गजब है। उनकी अपनी शैली है...वे अभिनेता से कहीं आगे एक बहुत अच्छे इंसान हैं। आभार आपका सीमा जी।

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    2. वाह कला के आशुतोष पर सुंदर आलेख 👌👌हार्दिक शुभकामनाएं और आभार🙏🙏

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    3. जी...। बहुत आभार रेणु जी..।

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