पर्वत...ये विशाल पर्वत...और इनमें हमारा रास्ता एक मोटी सी लकीर की भांति है...फिर क्यों पर्वतों से सीनाजोरी...। पर्वतों को इतना विशाल बनाया है फिर भी शांत और इंसान को इतना छोटा सा बनाया है फिर भी इतना अशांत...ओह पर्वत गिराकर रास्ता बनाने पर आमादा है...सोचिये तो सही पर्वतों की गहराई कहां से लाओगे...क्योंकि वो रास्ता देकर भी चुप थे और खुद मिटकर भी अशांत नहीं...फिर भी हम शांत नहीं...ओह कितनी आपाधापी है, कितनी हलचल है, कैसी भागमभाग और कहां थमेगी...।
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इसका अंजाम भी भुक्त रहा है इंसान, प्राकृतिक आपदाओं के रूप में। सार्थक लेख 👌👌👌👌
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