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हे अभिमन्यु ...चक्रव्यूह भेदना सीख लो

 बहुत साजिश हैं, अबकी पिछली दफा से कई गुना अधिक संगीन चक्रव्यूह है...उसे भेदना सीख लो...वरना हर युग में तुम यूं ही साजिश के शिकार होते रहोगे। तुम्हारा कोई दोष भी नहीं है लेकिन ये भी समझ लो कि अब कोख में ही सर्वज्ञ हो जाना जरुरी है, कोख में नींद नहीं लेनी है जागना है, जागते रहना है, सीखना है दुनिया के उन सभी कूटनीतिक प्रपंचों को जिनसे तुम्हें दोबारा लड़ना होगा। मैं तुम्हें ललकार नहीं रहा हूं लेकिन आगाह अवश्य कर रहा हूं क्योंकि मुझे चिंता है कि तुम हर युग में राजनीति और कूटनीति की भेंट न चढ़ा दिए जाओ। सुनो अभिमन्यु हैरान मत होना मैं यहां तुम्हारे नाम का उल्लेख इसलिए भी करना चाहता हूं क्योंकि तुम्हें इस सत्ता के भंवर में उतरकर अपनी ही तरह के असंख्य समुदाय का नेतृत्व करना है, उन्हें उन सभी प्रपंचों से बचाना है जिनसे वे ग्रसित होते रहे हैं। सुनो अभिमन्यु...कुछ भी तो नहीं बदला है, हां सच में। सबकुछ वैसा ही है जैसा तुम्हारे काल में होता था, नारी अब भी वेदना सह रही है, पासे अब भी फेंके जा रहे हैं, चौसर अब भी सजता है, प्यादे अब भी मनमाफिक निर्णय लेकर हंटर के दम पर अपनी मर्जी वाले खानों में खिसकाए जा रहे हैं, अब भी भीष्म अपने अंदर का युद्ध झेल रहे हैं अपनी मौन भरी शपथ के साथ। अब भी दुर्याधन अपनी गदा लेकर खुले आम रण में हैं, अब भी तुम्हारे पिता अर्जुन की भांति ज्ञान के सर्वज्ञ ज्ञाता अकेले हैं और दुविधा में, अब भी गांधरी की आंखों से पट्टी नहीं हटी है, अब भी धृतराष्ट्र इंतजार में हैं कि सत्ता के सुख का निर्णय शायद उन्हें चिर स्थायी सत्ता का मालिक बना दे, अब भी कर्ण अपनी निष्ठा का आकलन नहीं कर पाए हैं कि वो कहां हैं और क्यों हैं और उन्हें कहां और क्यों होना चाहिए ? अब भी सभा में वही सब हो रहा है जो तब हुआ करता था...हां मुझे एक बात उस समय की दोहरानी है जैसा की शास्त्र कहते हैं कि शिशुपाल की माता को अपने बेटे के प्राणों का भय हमेशा बना रहता था एक दिन शिशुपाल की माता ने श्रीकृष्ण से अपने पुत्र को न मारने का वचन लिया तब श्रीकृष्ण ने एक मां के वचन की लाज रखते हुए कहा कि मैं हमेशा शिशुपाल के पापों को क्षमा नहीं कर सकता इसलिए आप ही बताईये कि मैं आपके पुत्र की कितनी गलतियों को क्षमा कर सकता हूं इस पर शिशुपाल की माता ने विचार किया कि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन काल में 100 से अधिक गलतियां नहीं कर सकता, इसके बाद उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि आप मेरे पुत्र की 100 गलतियां को माफ कर देना, ये बात उन्होंने स्वीकार कर ली...लेकिन सभी जानते हैं कि 100 गलतियों तक शिशुपाल सुरक्षित था लेकिन 101 पर श्रीकृष्ण ने उसका सुदर्शन चक्र से वध कर दिया...। हे अभिमन्यु तुम्हें महाभारत काल का वो अध्याय भी कंठस्थ करना होगा। हे अभिमन्यु तुम वीर हो, समझ सकते हो, जन्म किसी के हाथ नहीं होता और मृत्यु भी नहीं...लेकिन मैं इतना अवश्य चाहता हूं कि तुम दोबारा इस धरा पर लौट आओ और इस अंतर को अवश्य पहचानना कि महापुरुषों का जन्म केवल कर्तव्यपथ पर चलने के लिए होता है, एक बार तुम साजिश के शिकार हो गए लेकिन अबकी तुम्हें तुम जैसे ही असंख्य लोगों का नेतृत्व करना है, यहां धरा पर आम जन तुम्हारी भांति ही चक्रव्यूह के भंवर में हैं, वे भी नहीं जानते कि आखिर कहां और कैसे निकला जाए, बहुत से तो उससे निकलने के प्रयासों में ही दम तोड़ रहे हैं...आखिर ये चक्रव्यूह कैसा है जो युगों के बदल जाने के बाद भी अब तक कायम है, ये साजिश कैसी है, ये कूटनीति, ये राजनीति और ये भयाक्रांत कर देने वाले प्रपंच...। मैंने इस महासमर के नेतृत्व के लिए तुम्हें इसलिए चुना है क्योंकि तुम ही हो जो उस युग के कुशल योद्धा बनकर उभरे थे, तुम ही थे जिसने उस चकव्यहू में दाखिल होने का साहस दिखाया था...बस अबकी उस निंद्रा को पास न आने देना, अबकी उस चक्रव्यहू के संपूर्ण ज्ञान तक जागते रहना...तुम्हें इस धरती पर उस ज्ञान के साथ आना है क्योंकि यहां के चक्रव्यूह भी भेदने के लिए हमेशा जागते रहना आवश्यक है, वो महाभारत का काल था ये भारत का मौजूदा हाल है...हे वीर तुम्हें दोबारा आना ही होगा एक और समर में उतरने के लिए...। 

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5 Comments

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 24 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी बहुत आभार आपका यशोदा जी...। अवश्य

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  2. सुंदर प्रस्तुति.

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  3. महाभारत के पात्रों को केन्द्र बिंदु बना कर वर्तमान परिस्थितियों पर चिंता व आव्हान करती लाजवाब लेखनी।
    धन्यवाद

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