सुबह हम और तुम चाय जैसे होते हैं, कुछ मीठे और इन दिनों बहुत कुछ अदरक की तरह तीखे से...। हां याद आया कि वो चाय ही है जो हमेशा से हमें साथ और बहुत करीब रखती आई है। हां तुम्हें याद होगा मुझसे अधिक चाय तुम्हें पसंद है लेकिन तुम्हारी पसंद हमेशा से मेरी और बहुत हमारी होकर अब इस भागती जिंदगी का सबसे बड़ा सुकून हो गई है वैसे चाय सुबह की शुरुआत के साथ बीते दिन के जमाखर्च पर संवाद का एक माध्यम भी है। मैं जानता हूँ इस दौर में भागते हुए हम ठहरते हैं और वो भी तुम्हारी जिद पर चाय के लिए, मैं ये भी जानता हूँ कि चाय यहां हमारे बीच के सुकून के और अपने खूबसूरत पलों के बीच एक गर्म लेकिन रिश्तों को सींचने वाली एक ठंडी सी गहरी श्वास है...। चाय अब भागती जिंदगी का हिस्सा है लेकिन तुम्हारे और मेरे बीच ये अक्सर समय को रोककर हमें साथ मुस्कुराने का अवसर देती है...। आह और वाह चाय...कुछ जिंदगी सी और बहुत अपनी सी...। मैं जानता हूँ जब भी मैं तुम्हें चाय कम करने को कहता हूँ तब अक्सर तुम्हारी नजरें बोल पड़ती हैं कि नहीं अभी नहीं... अभी हमें भागते हुए दौर में से बहुत सा समय अपने लिए बचाना है...और मैं चाय हाथ में लेकर मुस्कुरा देता हूँ...।
(फोटोग्राफ...गूगल साभार)
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